वैष्णव सम्प्रदाय(vaishanav sampradaya), भगवान श्री विष्णु को भजने का भक्ति मार्ग का एक पथ है। जो गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत आता है। कुछ का तो जन्म ही इस वंश संप्रदाय के अंतर्गत होता है फिर भी जब तक वो अपने पूर्वजो से गुरु दीक्षा मन्त्र ग्रहण नहीं करते तब तक वो पूर्ण रूप से इसमें समलित नहीं होते। इसलिए उनको सबसे पहले गुरु दीक्षा दी जाती है।
लेकिन इस संप्रदाय से कोई भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है। ये खुला द्वार है ईश्वर प्राप्ति के लिए। इस संप्रदाय के योग्य गुरु से दीक्षा प्राप्त करके वैष्णव संप्रदाय में प्रवेश मिल जाता है। क्युकी जीवन में भक्ति से भगवान पथ पे चलने के बारे में कोई योग्य गुरु ही दिशा दिखा सकते है। अगर आपका मन श्री हरि में उनके स्वरुप कृष्णा और राम जी में रमता है या श्री विष्णु के २४ अवतारों में तो इस सम्प्रदाय के गुरु आपका सही मार्गदर्शन कर सकते है।
विष्णु जी के अवतार:–
शास्त्रों में विष्णु के 24 अवतार बताए हैं, लेकिन प्रमुख 10 अवतार माने जाते हैं- मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्कि। 24 अवतारों का क्रम निम्न है-1. आदि परषु, 2. चार सनतकुमार, 3. वराह, 4. नारद, 5. नर-नारायण, 6. कपिल, 7. दत्तात्रेय, 8. याज्ञ, 9. ऋषभ, 10. पृथु, 11. मत्स्य, 12. कच्छप, 13. धन्वंतरि, 14. मोहिनी, 15. नृसिंह, 16. हयग्रीव, 17. वामन, 18. परशुराम, 19. व्यास, 20. राम, 21. बलराम, 22. कृष्ण, 23. बुद्ध और 24. कल्कि।
वर्तमान में ये सभी संप्रदाय अपने प्रमुख आचार्यो के नाम से जाने जाते हैं। यह सभी प्रमुख आचार्य दक्षिण भारत में जन्म ग्रहण किए थे। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत’ कहा गया है और भगवत के उपासक ‘भागवत’ कहलाते हैं।
भगवान:- विष्णु (वासुदेव) और उनके स्वरुप
प्राचीन नाम :- ‘भागवत धर्म’ या ‘पांचरात्र मत’
वैष्णव सम्प्रदाय के प्रकार :-
रामानुजसम्प्रदाय
माध्वसम्प्रदाय
वल्लभसम्प्रदाय
निम्बार्कसम्प्रदाय
वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय. वैष्णव का मूलरूप आदित्य या सूर्य देव की आराधना में मिलता है.
सबसे पौराणिक सम्प्रदाय है जो की भगवान विष्णु और उनके स्वरूपों को आराध्य मानने वाला सम्प्रदाय है। और ये शैव सम्प्रदाय के जितना ही दूसरा मह्त्वपूर्ण सम्प्रदाय है। इसके अन्तर्गत मूल रूप से चार संप्रदाय आते हैं। मान्यता अनुसार पौराणिक काल में विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा वैष्णव महामंत्र दीक्षा परंपरा से इन संप्रदायों की उत्पत्ति हुए।
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इसके अन्तर्गत मूल रूप से चार संप्रदाय आते हैं।
श्री सम्प्रदाय
ब्रह्म सम्प्रदाय
रुद्र सम्प्रदाय
कुमार संप्रदाय
इसके अलावा उत्तर भारत में आचार्य रामानन्द भी वैष्णव सम्प्रदाय के आचार्य हुए और चैतन्यमहाप्रभु भी वैष्णव आचार्य है जो बंगाल में हुए। रामान्दाचार्य जी ने सर्व धर्म समभाव की भावना को बल देते हुए कबीर, रहीम सभी वर्णों (जाति) के व्यक्तियों को सगुण भक्ति का उपदेश किया। आगे रामानन्द संम्प्रदाय में गोस्वामी तुलसीदास हुए जिन्होने श्री रामचरितमानस की रचना करके जनसामान्य तक भगवत महिमा को पहुँचाया।
ऋग्वेद में वैष्णव विचारधारा का उल्लेख मिलता है।
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वैष्णव साधु-संत:- वैष्णव साधुओं को आचार्य, संत, स्वामी आदि कहा जाता है।
वैष्णव संस्कार:- 1. वैष्णव मंदिर में विष्णु, राम और कृष्ण की मूर्तियां होती हैं। एकेश्वरवाद के प्रति कट्टर नहीं है। 2. इसके संन्यासी सिर मुंडाकर चोटी रखते हैं। 3. इसके अनुयायी दशाकर्म के दौरान सिर मुंडाते वक्त चोटी रखते हैं। 4. ये सभी अनुष्ठान दिन में करते हैं। 5. ये सात्विक मंत्रों को महत्व देते हैं। 6. जनेऊ धारण कर पितांबरी वस्त्र पहनते हैं और हाथ में कमंडल तथा दंडी रखते हैं। 7. वैष्णव सूर्य पर आधारित व्रत उपवास करते हैं। 8. वैष्णव दाह-संस्कार की रीति है। 9. यह चंदन का तिलक खड़ा लगाते हैं।
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हम गौर करें तो प्रसीद्ध भक्त नरसीह मेहता के इस भजन में वैष्णव जन को बहुत ही सुन्दर तरीके से परिभाषित किया गया है-
वैष्णव जन तो तेने कहिऐ जे पीऱ पराई जाणे रे।
पर दुखे उपकार करे तो मन अभिमान न आणे रे।। वैष्णव जन …
सकल लोक मां सबहु ने वन्दे, निन्दा न करे केणी रे।
वाच काच मन निश्चल राखे, धन-धन जननी वेणी रे।। वैष्णव जन …
समदृष्टि ने तृष्णा त्यागी, पर तीरीया जेने मात रे।
जिव्हा थकी असत्य न बोले, पर धन न झाले हाथ रे।। वैष्णव जन …
मोह माया व्यापे नहीं जेने, दृढ़ वैराग तेने मनमा रे।
राम नाम सू तानी लागी, सकल तीरथ तेने तनमा रे।। वैष्णव जन …
वण लोभी ने कपट रहित छे, काम क्रोध निवराया रे।
भणे नरसि तेनु दरसन करता, कुल इकोतर तारिया रे।। वैष्णव जन …