पवित्र नदियों में से एक है गंगा नदी:-गंगा नदी की कहानी
उदगम स्रोत(Origin Source) – गंगोत्री हिमनद
लंबाई(length) – 2,525 कि.मी
नदी मुख(Mouth of a River) – सुंदरवन, बंगाल की खाड़ी
गंगा नदी हमारे देश के सबसे पवित्र नदी है। गंगा को देवी और गंगा मां के नाम से भी पुकारते हैं। हमारे भारतवर्ष में गंगा के प्रति लोगों के मन में बहुत श्रद्धा है लोग गंगा को भगवान की तरह मानते हैं, गंगाजल को घर में रखते हैं और हर पवित्र कार्य में गंगा जल का प्रयोग करते हैं। गंगा का पानी इतना पवित्र है कि यह सालों तक रखने पर भी सरता नहीं है खराब नहीं होता है।
गंगा को स्वर्ग की नदी कहां जाता है लोग गंगा में नहा कर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं। भारत में लोगों की धारणा है कि गंगा में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं, और इंसान पवित्र हो जाता है। गंगा भारत की सबसे बड़ी नदियों में से एक है ये उत्तर भारत क्षेत्र में ही विकसित हुआ है गंगा नदी का इतिहास बहुत ही पुराना है गंगा से जुड़ी कई पौराणिक कथा है जिसमें से एक गंगा नदी की कहानी (कथा )ये भी है
माँ गंगा को पृथ्वी पर कौन लाया और क्यों गंगा नदी की कहानी?
गंगा नदी की कहानी राम ने ऋषि विश्वामित्र से कहा, “गुरुदेव! मेरी रुचि अपने पूर्वज सगर की यज्ञ गाथा को विस्तारपूर्वक सुनने में है। अतः कृपा करके इस वृतान्त को पूरा पूरा सुनाइये।” श्री राम जी के इस प्रकार से जिज्ञासा व्यक्त करने पर ऋषि विश्वामित्र प्रसन्न होकर कहने लगे, ” राजा सगर ने हिमालय एवं विन्ध्याचल के बीच की हरीतिमायुक्त भूमि पर एक विशाल यज्ञ मण्डप का निर्माण करवाया। फिर अश्वमेघ यज्ञ के लिये श्यामकर्ण घोड़ा छोड़कर उसकी रक्षा के लिये पराक्रमी अंशुमान को सेना के साथ उसके पीछे पीछे भेज दिया। यज्ञ की सम्भावित सफलता के परिणाम की आशंका से भयभीत होकर इन्द्र ने एक राक्षस का रूप धारण किया और उस घोड़े को चुरा लिया।
घोड़े की चोरी की सूचना पाकर सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को आज्ञा दी कि घोड़ा चुराने वाले को पकड़कर या मारकर घोड़ा वापस लाओ। पूरी पृथ्वी में खोजने पर भी जब घोड़ा नहीं मिला तो, इस आशंका से कि किसीने घोड़े को तहखाने में न छुपा रखा हो, सगर के पुत्रों ने सम्पूर्ण पृथ्वी को खोदना आरम्भ कर दिया। पाताल में घोड़े को खोजते खोजते वे कपिल मुनि के आश्रम में पहुँच गये। उन्होंने देखा कपिलदेव तपस्या में लीन हैं और उन्हीं के पास यज्ञ का वह घोड़ा बँधा हुआ है। उन्होंने कपिल मुनि को घोड़े का चोर समझकर उनके लिये अनेक दुर्वचन कहे और उन्हें मारने के लिये दौड़े। सगर के इन कुकृत्यों से कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई। उन्होंने क्रुद्ध होकर सगर के उन सब पुत्रों को भस्म कर दिया।”
ऋषि विश्वामित्र ने आगे कहा, “बहुत दिनों तक अपने पुत्रों की सूचना नहीं मिलने पर महाराज सगर ने अपने तेजस्वी पौत्र अंशुमान को अपने पुत्रों तथा घोड़े का पता लगाने के लिये आदेश दिया।अपने लक्ष्य के विषय में पूछता हुआ उस स्थान तक पहुँच गया जहाँ पर उसके चाचाओं के भस्मीभूत शरीरों की राख पड़ी थी और पास ही यज्ञ का घोड़ा चर रहा था। अपने चाचाओं के भस्मीभूत शरीरों को देखकर उसे अत्यन्त क्षोभ हुआ। उसने उनका तर्पण करने के लिये जलाशय की खोज की किन्तु उसे कोई भी जलाशय दृष्टिगत नहीं हुआ। तभी उसकी दृष्टि अपने चाचाओं के मामा गरुड़ पर पड़ी।
गरुड़ जी ने बताया कि किस प्रकार से इन्द्र ने घोड़े को चुरा कर कपिल मुनि के पास छोड़ दिया था और उसके चाचाओं ने कपिल मुनि के साथ उद्दण्ड व्यवहार किया था जिसके कारण कपिल मुनि ने उन सबको भस्म कर दिया। गरुड जी ने अंशुमान से कहा कि ये सब अलौकिक शक्ति वाले दिव्य पुरुष के द्वारा भस्म किये गये हैं अतः लौकिक जल से तर्पण करने से इनका उद्धार नहीं होगा, केवल हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगा के जल से ही तर्पण करने पर इनका उद्धार सम्भव है। थोड़ा रुककर ऋषि विश्वामित्र कहा, “महाराज सगर के देहान्त के पश्चात् अंशुमान बड़ी न्यायप्रियता के साथ शासन करने लगे। अंशुमान के परम प्रतापी पुत्र दिलीप हुये। दिलीप के वयस्क हो जाने पर अंशुमान दिलीप को राज्य का भार सौंप कर हिमालय की कन्दराओं में जाकर गंगा को प्रसन्न करने के लिये तपस्या करने लगे किन्तु उन्हें सफलता नहीं प्राप्त हो पाई और वे स्वर्ग सिधार गए। इधर जब राजा दिलीप का धर्मनिष्ठ पुत्र भगीरथ बड़ा हुआ तो उसे राज्य का भार सौंपकर दिलीप भी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिये तपस्या करने चले गये।
भगीरथ ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभो! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वर दीजिये कि सगर के पुत्रों को मेरे प्रयत्नों से गंगा का जल प्राप्त हो जिससे कि उनका उद्धार हो सके। इसके अतिरिक्त मुझे सन्तान प्राप्ति का भी वर दीजिये ताकि इक्ष्वाकु वंश नष्ट न हो।
जब गंगा जी वेग के साथ पृथ्वी पर अवतरित होंगीं तो उनके वेग को पृथ्वी संभाल नहीं सकेगी। गंगा जी के वेग को संभालने की क्षमता महादेव जी के अतिरिक्त किसी में भी नहीं है।
इसके लिये तुम्हें महादेव जी को प्रसन्न करना होगा। इतना कह कर ब्रह्मा जी अपने लोक को चले गये।
“भगीरथ ने साहस नहीं छोड़ा। वे एक वर्ष तक पैर के अँगूठे के सहारे खड़े होकर महादेव जी की तपस्या करते रहे।
अन्त में इस महान भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव जी ने भगीरथ को दर्शन देकर कहा कि हे भक्तश्रेष्ठ! हम तेरी मनोकामना पूरी करने के लिये गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करेंगे।
भगीरथ के इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने गंगा जी को हिमालय पर्वत पर स्थित बिन्दुसर में छोड़ा।
छूटते ही गंगा जी सात धाराओं में बँट गईं। गंगा जी की तीन धाराएँ ह्लादिनी, पावनी और नलिनी पूर्व की ओर प्रवाहित हुईं। सुचक्षु, सीता और सिन्धु नाम की तीन धाराएँ पश्चिम की ओर बहीं और सातवीं धारा महाराज भगीरथ के पीछे पीछे चली।
जिधर जिधर भगीरथ जाते थे, उधर उधर ही गंगा जी जाती थीं। स्थान स्थान पर देव, यक्ष, किन्नर, ऋषि-मुनि आदि उनके स्वागत के लिये एकत्रित हो रहे थे। जो भी उस जल का स्पर्श करता था, भव-बाधाओं से मुक्त हो जाता था।
चलते चलते गंगा जी उस स्थान पर पहुँचीं जहाँ ऋषि जह्नु यज्ञ कर रहे थे। गंगा जी अपने वेग से उनके यज्ञशाला की सम्पूर्ण सामग्री को साथ बहाकर ले जाने लगीं। इससे ऋषि को बहुत क्रोध आया और उन्होंने क्रुद्ध होकर गंगा का सारा जल पी लिया।
यह देख कर समस्त ऋषि मुनियों को बड़ा विस्मय हुआ और वे गंगा जी को मुक्त करने के लिये उनकी स्तुति करने लगे। उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर जह्नु ऋषि ने गंगा जी को अपने कानों से निकाल दिया और उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार कर लिया। तब से गंगा जाह्नवी कहलाने लगीँ।
वे भगीरथ के पीछे चलते चलते समुद्र तक पहुँच गईं और वहाँ से सगर के पुत्रों का उद्धार करने के लिये रसातल में चली गईं। उनके जल के स्पर्श से भस्मीभूत हुये सगर के पुत्र निष्पाप होकर स्वर्ग गये। उस दिन से गंगा के तीन नाम हुये, त्रिपथगा, जाह्नवी और भागीरथी।
“हे रामचन्द्र! कपिल आश्रम में गंगा जी के पहुँचने के बाद ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर भगीरथ को वरदान दिया कि तेरे पुण्य के प्रताप से प्राप्त इस गंगाजल से जो भी मनुष्य स्नान करेगा या इसका पान करेगा, वह सब प्रकार के दुःखो से रहित होकर अन्त में स्वर्ग को प्रस्थान करेगा। जब तक पृथ्वी मण्डल में गंगा जी प्रवाहित होती रहेंगी तब तक उसका नाम भागीरथी कहलायेगा और सम्पूर्ण भूमण्डल में तेरी कीर्ति अक्षुण्ण रूप से फैलती रहेगी। सभी लोग श्रद्धा के साथ तेरा स्मरण करेंगे। यह कह कर ब्रह्मा जी अपने लोक को लौट गये। भगीरथ ने पुनः अपने पितरों को जलांजलि दी।”
भागीरथ जी माँ गंगा को पृथ्वी पे लेकर आये अपने तप के और श्रद्धा के भाव से।
कितनी आसानी से हम गंगा जल का उपयोग कर लेते है लेकिन इसके पीछे भगीरथ जी का कितना बड़ा त्याग है। उनका किया गया एक त्याग आज न जाने कितनो को तृप्त करता है। इसलिए गर्व कीजिये अपनी संस्कृति पे और पूर्वज के किये गए त्याग समर्पण पे उन्होंने आने वाले पीढ़ियो के लिए सोचा। गंगा को साफ रखना हम सभी का कर्तव्य है क्युकी गंगा केबल जल पानी नहीं बल्कि माँ है देवी है। जो भाव से जायेगा वो भाव पायेगा और जो भाव के बिना है उसके लिए तो हर कण में सिर्फ आभाव ही आभाव है।
“गंगा” नदी के बारे में कुछ रोचक तथ्य :-
गंगा नदी का जिक्र सनातन धर्म के सबसे पवित्र और पुरातन ग्रंथ ‘ऋगवेद’ में है। इस ग्रंथ में गंगा को जाह्नवी कहा गया है।
माना जाता है कि ऑक्सीजन की कमी की वजह से पानी एक समय के बाद खराब होने लगता है, लेकिन गंगा जल के साथ यह समस्या नहीं है। ये अपने आप में एक चमत्कार है
हिन्दू मान्यता के अनुसार गंगा नदी में सिर्फ एक डुबकी लगाने मात्र से ही मनुष्य के जीवन-काल के सारे पाप धुल जाते हैं।
गंगा नदी के किनारे बहुत सारे तीर्थ स्थल हैं जिनमें इलाहाबाद, वाराणसी, कानपुर, पटना और हरिद्वार मुख्य हैं।
भारत और बांग्ला देश की कृषि में गंगा नदी का बहुत बड़ा सहयोग है। गंगा, उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है
इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पाई ही जाती हैं मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं।
हिंदू लोग अपने हर त्यौहार, धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा-पाठ में गंगाजल का प्रयोग करते हैं।
मकर संक्रान्ति के दिन लाखों की संख्या में लोग गंगा सागर में डुबकी लगाते हैं।
नैनीताल (उत्तराखंड) हाई कोर्ट ने गंगा नदी को भारत की पहली जीवित इकाई के रूप में मान्यता दी है।
गंगा में रैफ्टिंग भी होती है।
पहाड़ी रास्ता तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरिद्वार में करती हैं।
देवप्रयाग में भागीरथी (बाएँ) एवं अलकनंदा (दाएँ) मिलकर गंगा का निर्माण करती है
नमामि गंगे परियोजना :-
गंगा नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया। प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियंत्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया। इसके बाद उन्होंने जुलाई 2017 में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की। इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है।
माँ गंगा का मंदिर (various temples of maa ganga):-
मां गंगा के बहुत सारे मंदिर है कुछ मंदिर ऐतिहासिक है कुछ नवनिर्माण किए गए मंदिर है। जो मां गंगा को समर्पित है यहां पर आकर भक्त श्रद्धालु मां गंगा के बारे में जानते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं और साक्षात मां गंगा का दर्शन करते हैं
माँ गंगा का मंदिर -गंगोत्री (Maa Ganga Temple Gangotri)
हर की पौड़ी, हरिद्वार (Haridwar)
गंगा माँ का मंदिर (Ganga Temple-Haridwar, Uttarakhand )