निवेदन:- हर साल देव दीपावली (नवंबर महीने के आसपास) के मौके पर यात्रा निकलेगी। गुजरात और अन्य राज्यों के हजारों लोग गिरनार यात्रा में हिस्सा लेते हैं। गिरनार परिक्रमा (Girnar Parikrama) की लंबाई लगभग 38 किमी है। रूपायतन से शुरू होकर गिरनार तेली में समाप्त। परिक्रमा / यात्रा का मार्ग गिर वन क्षेत्र में है और केवल परिक्रमा के दौरान 5-10 दिनों के लिए खुलता है। गिरनार की परिक्रमा अध्यात्म से जुड़ी परिक्रमा है भक्त और भगवान से जुड़ी हुई परिक्रमा है। आज हम गिरनार की परिक्रमा के बारे में जानेंगे क्यों यह अपनी जगह पर महत्वपूर्ण रखता है क्यों इस पीढ़ी को और आने वाली पीढ़ी को इसके महत्व की गहराई को समझना चाहिए।
“जानकारी अच्छी लगे तो सभी से शेयर जरूर करे क्युकी आज हमारी खोती हुई भारतीय संस्कृति जो विरासत में मिली उसको को प्रसार की जरुरत है जिससे आने वाली पीढ़ियों तक इसकी चमक पहुंच सके। और अपनी मातृभाषा हिंदी पे हमेशा गर्व कीजिये और इसका सम्मान-प्रसार जरूर कीजिये। “
गिरनार परिक्रमा भगवान दत्तात्रेय की परिक्रमा है जिनका निवास गिरनार पर्वत पे है। हिंदू धर्म के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रचलित विचारधारा के विलय के लिए ही भगवान दत्तात्रेय ने जन्म लिया था, इसीलिए उन्हें त्रिदेव का स्वरूप भी कहा जाता है।
हर साल देव दीपावली या कार्तिक सूद के अवसर पर गिरनार परिक्रमा या प्रदक्षिणा के नाम से विशेष यात्रा निकाली जाती है। गुजरात और अन्य राज्यों के हजारों लोग गिरनार यात्रा में हिस्सा लेते हैं। एक धार्मिक दृष्टिकोण के अलावा, परिक्रमा सामाजिक दृष्टि से भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस अवसर पर विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग एक साथ आते हैं।
परिक्रमा दुधेश्वर मंदिर से शुरू होकर BHAVNATH TALETI तक जाती है। फिर लोग घने जंगल से होकर गुजरते हैं। गुजरने के बाद, वे ZINA BAVA NI MADHI तक पहुँचते हैं जो जूनागढ़ जिले के सबसे बड़े बांध-हसनपुर धाम के पास है। तीर्थयात्री यहाँ एक रात रुकते हैं। एक बहुत ही खूबसूरत मंदिर जिसका नाम है CHANDRA-MAULESHWAR यहां स्थित है।
गिरनार में भगवान दत्तात्रेय को 3 सिर और एक रूप दिखाया गया है जो शांति और शांति की शक्ति का प्रतीक है। वर्तमान कलियुग में, यह केवल शुद्ध, दिव्य प्रेम के माध्यम से ही कलयुग प्रभाव को को काम किया जा सकता है। और इस कलयुग से परे जा सकता है। और उस प्रकार की शांति प्राप्त कर सकता है। केवल वे ही अत्यंत धार्मिक और धर्मी लोग सत्कर्म मार्ग का अनुसरण कर सकते हैं और पूर्ण सत्य की खोज के लिए आगे बढ़ सकते हैं। भगवान दत्तात्रेय उस पर बहुत प्यार और करुणा का संचार करते हैं जो इस परिक्रमा को सच्चे मन से लगाता है, जिससे उनके व्यक्ति को शांति और प्यार मिलता है।
देखा जाए तो भगवान दत्तात्रेय उतने अधिक जाने-पहचाने हुए भगवान नहीं हैं, जितने भगवान राम-कृष्ण या शंकरजी अथवा हनुमान जी को लोग जानते है। इसीलिए बहुत से लोगों को भगवान दत्तात्रेय के बारे में अधिक जानकारी भी नहीं है, और दत्त तीर्थस्थलों के बारे में भी उतना प्रचार-प्रसार दिखाई नहीं देता, जैसा कि वैष्णो देवी या कामाख्या मंदिर का होता है.
गुजरात के सौराष्ट्र स्थित जूनागढ़ से कुछ ही किमी दूर है गिरनार पर्वतमाला. इसी पर्वतमाला की एक चोटी पर भगवान दत्तात्रेय ने कठोर तपस्या की थी, और आज भी उनकी चरण पादुकाएँ वहाँ स्थापित हैं. गिरनार को “सिद्धक्षेत्र” कहा जाता है. ऐसा कोई भी क्षेत्र, जहाँ किसी आध्यात्मिक शक्तिशाली सिद्धपुरुष ने चार तप किए हों, उसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं.
गिरनार की ऊँची चोटी पर स्थित दत्तात्रेय की चरण पादुकाओं के दर्शन प्राप्त करने के लिए श्रद्धालुओं को दस हजार सीढ़ियों की कठिन चढ़ाई करनी पड़ती है. ज़ाहिर है कि इस चढ़ाई के लिए कठोर परिश्रम, अपार श्रद्धा और लगन चाहिए होगी, लेकिन अक्सर देखा गया है कि कई वृद्धजन भी “अवधूत चिंतन श्री गुरुदेवदत्त” तथा दिगंबरा, दिगंबरा श्रीपादश्रीवल्लभ दिगंबरा” का उदघोष करते हुए आराम से इतनी कठिन यात्रा पूरी कर ही लेते हैं.
भगवान दत्तात्रेय चरण पादुकाओं के दर्शन की श्रद्धापूर्ण लेकिन कठिन यात्रा आरम्भ होती है, दामोदर कुण्ड से. दामोदर कुण्ड से पवित्र जल लेकर एवं बलदेवजी के मंदिर से “बल” प्राप्त करके भक्तगण यात्रा शुरू करते हैं. इस यात्रा पहला पड़ाव आता है, 4500 सीढ़ियाँ चढने के बाद जहाँ श्वेताम्बर और दिगंबर जैन सम्प्रदायों के सुन्दर, कलात्मक और शांत मंदिर स्थित हैं.
यहाँ जैन मुनियों एवं तीर्थंकरों के दर्शन करने के बाद भक्तगण 1000 सीढ़ियाँ और चढ़ते हैं तो उन्हें मिलता है अम्बाजी मंदिर. यह देवी माता का मंदिर है और गुप्त साम्राज्य के समय निर्मित किया गया था. नवविवाहित जोड़े इस अम्बाजी के मंदिर में अपने सफल वैवाहिक जीवन हेतु आशीर्वाद प्राप्त करने अवश्य आते हैं.
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