हमारी विरासत गोवत्स द्वादशी(Hamari virasat Govatsa Dwadashi) की जानकारी में आपका स्वागत है। गोवत्स द्वादशी एक हिंदू सांस्कृतिक और धार्मिक त्योहार है जो विशेष रूप से भारतीय राज्य महाराष्ट्र में दिवाली समारोह की शुरुआत का प्रतीक है, जहां इसे वासु बरस के नाम से जाना जाता है। गुजरात में, इसे आंध्र प्रदेश राज्य में पिथापुरम दत्ता महासंस्थान में वाघ बरस के रूप में और श्रीपाद श्री वल्लभ के श्रीपाद वल्लभ आराधना उत्सव के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में, गायों को मानव जाति को पोषण प्रदान करने के लिए बहुत पवित्र और माताओं के बराबर माना जाता है।
Also called | Vasu Baras, Nandini Vrat, Bach Baras |
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Observed by | Hindus |
Type | Hindu cultural and religious observance |
Celebrations | 1 day |
Observances | Worship cows and calves and feed them wheat products |
Begins | The twelfth day of the waning moon fortnight (Krishna Paksha) in the month of Kartik |
Date | October/November |
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हमारा सनातन धर्म धार्मिक आस्था से बढ़कर है। यह जीवन और सृजन को गले लगाने, और सम्मान करने और हमारे जीवन में हमेशा इसकी उपस्थिति को स्वीकार करने का एक तरीका है। न केवल आकाशीय, देवता और अन्य, बल्कि पौधे, जानवर और पक्षी भी पूजा का हिस्सा हैं क्योंकि हमारे जीवन और अस्तित्व में उनकी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। सृष्टि के लिए प्रार्थना करते हुए पवित्र गौ को हमारी माता माना जाता है; इसलिए, हमारी पहली पूजा हमेशा गौ माता की होती है जिसमें सभी दिव्य और देवता सर्वव्यापी हैं।
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गोवत्स द्वादशी/बछ बारस की पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। उनकी दो रानियां थीं, एक का नाम ‘सीता’ और दूसरी का नाम ‘गीता’ था। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था। वह उससे बहुत नम्र व्यवहार करती थी और उसे अपनी सखी के समान प्यार करती थी। राजा की दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछडे़ से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी।
यह देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय-बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईर्ष्या करती है। इस पर सीता ने कहा- यदि ऐसी बात है, तब मैं सब ठीक कर लूंगी। सीता ने उसी दिन गाय के बछडे़ को काट कर गेहूं की राशि में दबा दिया। इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा। राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई।
उसी समय आकाशवाणी हुई- ‘हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछडे़ को काटकर गेहूं की राशि में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हो रहा है। कल ‘गोवत्स द्वादशी’ है। इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल दीजिए और गाय तथा बछडे़ की पूजा करें।
इस दिन आप गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करें। इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिंदा हो जाएगा। अत: तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व माना गया है तथा गाय और बछड़ों की सेवा की जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में, गायों को पवित्र और भगवान का अवतार माना जाता है। इस दिन को विभिन्न क्षेत्रों में वसु बारस, गोवत्स द्वादशी या नंदिनी व्रत के रूप में भी जाना जाता है। हालांकि, यह त्यौहार सबसे प्रमुख रूप से महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है जहां यह गायों और बछड़ों के सम्मान से जुड़ा है।
इस त्योहार की उत्पत्ति समुंद्र मंथन की पौराणिक कथाओं से जुड़ी है, एक समय जब देवता और दानव समुद्र मंथन करके अमृत खोजने के लिए होड़ में थे। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें सात महान देवताओं के माध्यम से उपहार के रूप में दिव्य गाय कामधेनु भी प्राप्त हुई। कामधेनु को मातृत्व, उर्वरता, देवत्व और जीविका के आशीर्वाद से जोड़ा जाता है। यह दिव्य पशु भगवान कृष्ण, विष्णु अवतार के साथ निकटता से जुड़ा हुआ है।
गोवत्स द्वादशी पर महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। यह एक लोकप्रिय धारणा है कि यदि कोई निःसंतान दंपत्ति गोवत्स द्वादशी पूजा को समर्पित रूप से करता है और व्रत रखता है, तो उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है। उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में, गोवत्स द्वादशी को वाघ द्वादशी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है किसी का वित्तीय ऋण चुकाना। इसलिए इस चुने हुए दिन पर व्यवसायी अपना पुराना खाता बही सही कर देते हैं और अपने नए बही खाते में आगे लेनदेन करते हैं। जो व्यक्ति गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की पूजा करता है, उसे बहुतायत और स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है।
गाय माता के धार्मिक महत्व का सबसे पुराना ज्ञात उल्लेख वेदों में मिलता है। सबसे पुराना वेद, ऋग्वेद, गाय को धन और आनंदमय सांसारिक जीवन से जोड़ता है। एक श्लोक कहता है, गायें आई हैं तो हमारे लिए सौभाग्य लाई हैं। हमारे आंगन में वे संतुष्ट रहें! वे हमारे लिए बहुरंगी बछड़ों को जन्म दें और हर दिन इंद्र के लिए दूध दें। गायों के आशीर्वाद से ही मनुष्य को कार्य करने की शक्ति आती है। इस तरह के छंद इस दावे को बल देते हैं कि गाय के महत्व लगभग 3,000 साल पहले हिंदू संस्कृति में शामिल किया गया था।
नोट:– ये जानकारी विकिपीडिया और निजी सामाजिक पारिवारिक त्यौहार के मान्यता जानकारी के अनुसार दिया गया। अगर इसमें कोई त्रुटि हो हमें माफ़ करे. हमारी कोशिश आप तक सही जानकारी पहुंचना है। संस्कृति का प्रचार करना।