क्या आप जानते है? परिक्रमा क्या हैं? और कितने तरीको की होती है?

क्या आप जानते है? परिक्रमा क्या हैं? और कितने तरीको की होती है?

निवेदन:- भारतीय संस्कृति में एक नाम है जो महत्व रखता है वो है परिक्रमा parikrama। हमारे देश में कई ऐसे धार्मिक स्थल है। जिसकी परिक्रमा का अनंत गुना फल है। हम में से कितने ऐसे युवा है जो परिक्रमा लगते तो है लेकिन उसका महत्व और उसके गुणों के बारे में पता नहीं होता। लेकिन आज आप सभी परिक्रमा के बारे में जानेगे। जिससे आप औरो को उसके महत्व के बारे में बता सके। क्युकी वैसे परिक्रमा करना अच्छा तो लगता है अगर आप उसके आध्यात्मिक -सांस्कृतिक महत्व की गहराइयों को समझ कर करेंगे तो उसका कई गुना फल मिलेगा।

“जानकारी अच्छी लगे तो सभी से शेयर जरूर करे क्युकी आज हमारी खोती हुई भारतीय संस्कृति जो विरासत में मिली उसको को प्रसार की जरुरत है जिससे आने वाली पीढ़ियों तक इसकी चमक पहुंच सके। और अपनी मातृभाषा हिंदी पे हमेशा गर्व कीजिये और इसका सम्मान-प्रसार जरूर कीजिये। “

परिक्रमा क्या है ?

दिव्य शक्तियों या भगवान की या किसी पवित्र स्थानों की धार्मिक/आध्यात्मिक स्थलों के चारों ओर के मार्ग पर चलने को परिक्रमा कहते हैं। परिक्रमा या प्रदक्षिणा दिव्य शक्तियों या भगवान की या किसी दिव्य स्थलों की धार्मिक/आध्यात्मिक स्थलों की जाती है। जिस की मान्यता सदियों पुरानी है। जिसका वर्णन हमारे वेदो में धर्म ग्रंथो में मिलता है।

परिक्रमा क्यों करनी चाहिए ?

ये हम सभी जानते है आभा (aura ) के बारे में। जब आप किसी संत या किसी ऐसे इंसान से मिलते है जिनका हर विचार एक सकरात्मक (positivity) को दर्शाता है। उसके पास खड़े होते ही आप खुद को सकरात्मक ऊर्जा से भरा महसूस करने लगते है।

उसी तरीके से मंदिर , तीर्थ स्थल , दिव्य स्थलों के अंदर और उसके चारो तरफ एक आध्यात्मिक आभा होतीं है। जिसके संपर्क पे आने से वो आपके अंदर प्रवेश करने लगती है। जिससे आप खुद को आध्यात्मिक विचार से ऊर्जा से भरा महसूस करते है। जो आपको एक शक्ति प्रदान करती है। जीवन के हर परिस्थिति में दृढ़ता प्रदान करती है।

आप जिस पवित्र स्थानों की या भगवान की परिक्रमा करते है उसमे और उसके चारो तरफ एक शक्तिशाली आध्यात्मिक आभा (aura )ऊर्जा मौजूद होती है। जो आपके अंदर प्रवेश कर आपको एक दिव्यता प्रदान करती है। और आप महसूस करते है एक अनछुए सा साथ भगवान का जो सदैव आपके साथ है।

ये हैं प्रमुख परिक्रमाएं:-

  1. देवमंदिर और मूर्ति परिक्रमा:- जैसे देव मंदिर में जगन्नाथ पुरी परिक्रमा, रामेश्वरम, तिरुवन्नमल, तिरुवनन्तपुरम परिक्रमा और देवमूर्ति में शिव, दुर्गा, गणेश, विष्णु, हनुमान, कार्तिकेय आदि देवमूर्तियों की परिक्रमा करना।
  2. नदी परिक्रमा:- जैसे नर्मदा, गंगा, सरयु, क्षिप्रा, गोदावरी, कावेरी परिक्रमा आदि।.पर्वत
  3. पर्वत परिक्रमा:- जैसे गोवर्धन परिक्रमा, गिरनार, कामदगिरि, तिरुमलै परिक्रमा आदि।
  4. वृक्ष परिक्रमा:- जैसे पीपल और बरगद की परिक्रमा करना।
  5. तीर्थ परिक्रमा:- जैसे चौरासी कोस परिक्रमा, अयोध्या, उज्जैन या प्रयाग पंचकोशी यात्रा, राजिम परिक्रमा आदि।
  6. चार धाम परिक्रमा:- जैसे छोटा चार धाम परिक्रमा या बड़ा चार धाम यात्रा।
  7. भरत खण्ड परिक्रमा:- अर्थात संपूर्ण भारत की परिक्रमा करना। परिवाज्रक संत और साधु ये यात्राएं करते हैं। इस यात्रा के पहले क्रम में सिंधु की यात्रा, दूसरे में गंगा की यात्रा, तीसरे में ब्रह्मपु‍त्र की यात्रा, चौथे में नर्मदा, पांचवें में महानदी, छठे में गोदावरी, सातवें में कावेरा, आठवें में कृष्णा और अंत में कन्याकुमारी में इस यात्रा का अंत होता है। हालांकि प्रत्येक साधु समाज में इस यात्रा का अलग अलग विधान और नियम है।
  8. विवाह परिक्रम:- मनु स्मृति में विवाह के समक्ष वधू को अग्नि के चारों ओर तीन बार प्रदक्षिणा करने का विधान बतलाया गया है जबकि दोनों मिलकर 7 बार प्रदक्षिणा करते हैं तो विवाह संपन्न माना जाता है।

प्रसिद्द परिक्रमाएँ स्थान(List of parikrama):-

ये कुछ प्रसिद्द परिक्रमा है साथ ही और भी कुछ परिक्रमाएँ है उसकी जानकरी भी हम जल्द ही उपलब्ध करवाएंगे।

  1. वृंदावन परिक्रमा ( Vrindavan parikrama)
  2. व्रजमण्डला परिक्रमा (Vraja Mandala parikrama)
  3. गोवर्धन परिक्रमा (Govardhan hill parikrama)
  4. अयोध्या परिक्रमा ( Ayodhya parikrama)
  5. गिरनार परिक्रमा ( Girnar parikrama )
  6. कुरुक्षेत्र परिक्रमा ( Kurukshetra parikrama)
  7. नर्मदा परिक्रमा (Narmada parikrama)

वृंदावन परिक्रमा ( Vrindavan parikrama) :-

वृंदावन को प्रेम की भक्ति की भूमि कहा जाता है जहां साक्षात राधा कृष्ण दिव्य रूप से सदैव विराजमान रहते हैं इस दिव्यता से भरे वृंदावन की परिक्रमा बड़े ही सौभाग्य से करने को मिलती है। जिसने भी जीवन में एक बार भी वृंदावन की परिक्रमा की होगी उसने साक्षात राधे कृष्ण युगल सरकार की परिक्रमा की है। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे vrindavan parikrama

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व्रजमण्डला परिक्रमा (Vraja Mandala parikrama) :-

ब्रज मंडल परिक्रमा राधे कृष्ण के जीवन से जुड़ी वह सभी महत्वपूर्ण स्थानों का संगम है। जहां पर श्री कृष्ण ने अपना जीवन बिताया अनेक बाल लीलाये की , जहां पर राधा कृष्ण की अद्भुत दिव्य लीला का वो प्रसार हुआ। और ये 84 कोस में फैला हुआ है। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे 84 kosh yatra

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गोवर्धन पर्वत(नाथ ) (Govardhan hill parikrama):-

गोवर्धन पर्वत जो की साक्षात् श्री कृष्ण भगवान का स्वरुप है। गोवेर्धन परिक्रमा का बहुत धार्मिक महत्व है। वर्तमान में इसका उच्चतम बिंदु सिर्फ 25 मीटर (82 फीट) ऊंचा है और भारत के उत्तर प्रदेश में मथुरा वृंदावन के पास स्थित है। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे Goverdhan Parikarma

Goverdhan Parikarma

अयोध्या परिक्रमा ( Ayodhya parikrama) :-

भारत के उत्तर प्रदेश शहर अयोध्या जो की श्री राम जी की जन्म भूमि भी है। जिसमे पंचकोसी परिक्रमा दो दिनों की अवधि में की जाती है।ये परिकर्मा श्री राम जी की कृपा प्राप्त करवाती है। और उनके श्री चरणों में भक्ति। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे Ayodhya Parikrama

Ayodhya Parikrama

गिरनार परिक्रमा ( Girnar parikrama ) :-

भारत के गुजरात के जूनागढ़ जिले के गिरनार पर्वत पर आयोजित सात दिवसीय उत्सव है। पवित्र गिरनार पर्वत की चोटी तक पहुंचने के लिए 10,000 कदम की चढ़ाई शामिल है।जैन इसे गिरनार पर्वत कहते हैं। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे Girnar Parikrama

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कुरुक्षेत्र परिक्रमा ( Kurukshetra parikrama) :-

कुरुक्षेत्र की 48 कोस परिक्रमा, हरियाणा, भारत के पवित्र शहर कुरुक्षेत्र के चारों ओर 200 महाभारत-संबंधी और अन्य वैदिक युग के तीर्थों की 48 कोस परिधि है। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे kurukshetra parikram

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नर्मदा परिक्रमा (Narmada parikrama) :-

नर्मदा परिक्रमा, जैसा कि कहा जाता है, को एक मेधावी कार्य माना जाता है जिसे एक तीर्थयात्री कर सकता है। नर्मदा नदी के महत्व को इस तथ्य से प्रमाणित किया जाता है कि तीर्थयात्री नदी की परिक्रमा या परिक्रमा का पवित्र तीर्थयात्रा करते हैं। सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करे Narmada parikrama

परिक्रमा के नियम:-

हम सभी जानते हैं इन सभी तीर्थ स्थलों की परिक्रमा कुछ मिनटों की नहीं होती ये कुछ घंटों की होती है। या तो कुछ दिनों की होती है। इस परिक्रमा को करने का भाव उसके मन में ही जगता है जिसके मन में श्रद्धा और विश्वास जगता है भगवान की कृपा से। जिसे विश्वास है भगवान से जुड़ी उन पौराणिक कथाओं पे और जो विश्वास रख कर परिक्रमा करता है उसके महत्व को समझ कर परिक्रमा करता है तो उसे पूर्ण और संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है।

अगर हम परिक्रमा करने जा रहे हैं जिस भी स्थान की तो हमें उसकी महत्व को जरूर जानना चाहिए। जिससे हमारे दिल में इस परिक्रमा को लेकर भाव उत्पन्न हो जिससे हम और श्रद्धा से भक्ति से परिक्रमा लगा सके। परिक्रमा की कुछ नियम होते हैं जिसका हमें पालन करना चाहिए हम बहुत सारे नियम तो नहीं कर सकते लेकिन हां कुछ नियम जरूर पूरा कर सकते हैं जो बहुत ही जरूरी है जिससे हमारा परिक्रमा व्यर्थ ना जाए उससे कई गुना फल प्राप्त हो सके और हम भगवान की कृपा के जीवन भर पात्र बन सके।

  1. जहां से आप परिक्रमा प्रारंभ करें वहीं पर परिक्रमा का अंत करें।
  2. जिस भी पवित्र स्थल की परिक्रमा कर रहे हैं उसकी जानकारी ले उसके महत्व को जाने फिर परिक्रमा आरंभ करें।
  3. कपड़े साफ व शुद्ध होने चाहिए। अगर किसी कारन बस ऐसा नहीं हो सकता तो कोई बात नहीं मज़बूरी में सब माफ़ है। क्युकी भगवान आपकी भाव की शुद्धि को ज्यादा महत्व देते है। वो शुद्ध होनी चाहिए।
  4. हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तीर्थ स्थान पर परिक्रमा मार्ग पर हमसे किसी का अपमान ना हो हमसे कोई अपराध ना हो क्योंकि तीर्थ स्थान पे किया गया पुण्य कर्म का फल कई गुना मिलता है तो किया गया पाप का दोष भी कई गुना मिलता है। इसीलिए एकाग्र होकर परिक्रमा करें।
  5. पूजा हमेशा समर्पण भाव से की जाती है। इसलिए परिक्रमा करते समय मन से सभी विचार निकाल कर भगवान के नाम का ही जाप करें।
  6. परिक्रमा करते समय बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही शौच आदि करें और इसके बाद जल से अपने हाथ और मुख को अच्छी तरह से धोएं।
  7. परिक्रमा करते समय किसी पर भी क्रोध नहीं करना चाहिए और न हीं किसी को अपशब्द या कटू वचन बोलने चाहिए।
  8. परिक्रमा मार्ग पर जरूरतमंदों को दान करें अगर आप सामर्थ्य बान हैं तो दान जरूर करें यह कई गुना आपके पास लौट कर जरूर आएगा।
  9. परिक्रमा मार्ग में जितने भी बीच में मंदिर या कोई अध्यात्मिक मान्यताओं से भरा स्थल आता है उसके सामने माथा जरूर टेके नतमस्तक जरूर होये। प्रणाम करे

परिक्रमा- प्रदक्षिणा में छिपा इतिहास :-

यह परिक्रमा केवल पारंपरिक आधार पर ही नहीं की जाती बल्कि इसे करने के और भी कारण हैं। कारण जानने से पहले जरूरी है परिक्रमा करने के लाभ जानना लेकिन इससे भी अति आवश्यक है परिक्रमा करने के पीछे का इतिहास। हिन्दू धार्मिक इतिहास में दी गए एक कथा हमें परिक्रमा करने का कारण भी बताती है।

माता पार्वती का आदेश :-

एक बार भगवान शंकर की अर्धांगिनी माता पार्वती द्वारा अपने पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश को सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पृथ्वी का एक चक्कर लगाकर उनके पास वापस लौटने का आदेश दिया गया। जो भी पुत्र इस परिक्रमा को पूर्ण कर माता के पास सबसे पहले पहुंचता वही इस दौड़ का विजेता होता तथा उनकी नजर में सर्वश्रेष्ठ कहलाता।

  • कार्तिकेय और गणेश यह सुन कार्तिकेय अपनी सुंदर सवारी मोर पर सवार हुए तथा पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। उन्हें यह भ्रमण समाप्त करने में युग लग गए लेकिन दूसरी ओर गणेश द्वारा माता की आज्ञा को पूरा करने का तरीका काफी अलग था जिसे देख सभी हैरान रह गए।
  • भगवान गणेश ने की परिक्रमा गणेश ने अपने दोनों हाथ जोड़े तथा माता पार्वती के चक्कर लगाना शुरू कर दिया। जब कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटे और गणेश को अपने सामने पाया तो वह हैरान हो गए। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे गणेश उनसे पहले दौड़ का समापन कर सकते हैं।
  • माता पार्वती ही हैं संसार बाद में प्रभु गणेश जी उन्होंने बताया कि उनका संसार तो स्वयं उनकी माता हैं, इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए विश्व का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है। इस पौराणिक कथा में भगवान गणेश की सूझबूझ ना केवल मनुष्य को परिक्रमा पूर्ण करने का महत्व समझाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारे माता-पिता, जो कि ईश्वर के समान हैं उनकी परिक्रमा करने से ही हमें संसार का ज्ञान प्राप्त होता है।

पुराण में दर्ज माता पार्वती, कार्तिकेय तथा गणेश की इस कथा के बाद ही हिन्दू धर्म में परिक्रमा करने की रीति का आरंभ हुआ। तब से लेकर आज तक विभिन्न धार्मिक स्थलों पर परिक्रमा करने का रिवाज है। लेकिन इस प्रदक्षिणा को निपुणता पूर्वक करने के लिए कुछ मूल निर्देश भी स्थापित किए गए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। 

दिव्य वृक्ष जिसकी परिक्रमा होती है:-

हिंदू धर्म के अनुसार, देवत्व की पूजा में कुछ पौधों और पेड़ों की पूजा करना शामिल है जिन्हें पवित्र माना जाता है। ये पेड़ बहुत सारे धार्मिक महत्व का दावा करते हैं। हमारे प्राचीन शास्त्र भी संकेत देते हैं कि पौधों और पेड़ों की पूजा करना वास्तव में एक प्राचीन भारतीय प्रथा है। कई हिंदू परंपराएं उनसे जुड़ी हुई हैं। आज भी, आधुनिक भारतीय परंपराओं में पौधों और पेड़ों की पूजा के लिए एक प्राथमिक स्थान है क्योंकि वे जीवन, उर्वरता, समृद्धि, विकास, पवित्रता और देवत्व का प्रतीक हैं।यहां पांच पेड़ हैं जिन्हें हिंदू संस्कृति में सबसे पवित्र माना जाता है:

  • बेल का पेड़
  • केले का पेड़
  • तुलसी
  • बरगद का पेड़
  • पीपल का पेड़

परिक्रमा का महत्व :-

यह भी मान्यता है कि परिक्रमा हमेशा धीरे-धीरे ही करनी चाहिए आराम से चलते हुए हमारा प्रभु पर ध्यान बना रहता है और इसी प्रकार हमें मन की शांति प्राप्त होती है। प्रदक्षिणा को घड़ी की सुई की दिशा में करने का एक कारण यह भी है कि इस तरह से चलते हुए प्रभु हमेशा हमारे दाईं ओर रहते हैं जिससे हमें खुद भी जीवन में सही दिशा में रहने की ही सीख मिलती है।

परिक्रमा करने के लाभ :-

भगवान से विभिन्न फल पाने के लिए या फिर अपने मन को शांति देने के लिए हम उनसे प्रार्थना करते हैं। इसी तरह से भगवान की परिक्रमा करते हुए भी हमें अनेक लाभ मिलते हैं। कहते हैं मंदिर या पूजा स्थल पर प्रार्थना करने के बाद उस जगह का वातावरण काफी सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।

परिक्रमा का वैज्ञानिक लाभ:-

जो भी व्यक्ति उस स्थान पर उस समय मौजूद होता है उसे इस ऊर्जा की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि ठीक गणेश भगवान की तरह ही मंदिर में भक्त भी भगवान की मूर्ति की परिक्रमा करता है और उनसे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करता है। यह ऊर्जा हमें जीवन में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करती है। इस तरह ना केवल आध्यात्मिक वरन् मनुष्य के शरीर को भी वैज्ञानिक रूप से लाभ देती है परिक्रमा।

प्रदक्षिणा क्या होता है। ?

यह परिक्रमा का ही छोटा रूप होता है। इष्टदेव की मूर्ति (या कहीं-कहीं देवायतन) के चारों ओर वृत्ताकार(गोल मे) इस प्रकार घूमना जिसमें देव या मंदिर अपने दक्षिण भाग में रहे, प्रदक्षिणा कहलाता है। यह प्रदक्षिणा (नमस्कार के साथ) एक ‘उपचार’ माना जाता है, ऐसा बहुतों का मत है। प्रदक्षिणा के अंत में प्रणाम अवश्य करना चाहिये। यह प्रदक्षिणा पूजा का एक अंग है, अत: भक्तिभाव से ही इसका अनुष्ठान होना चाहिए। नमस्कार के साथ प्रदक्षिणा के विभिन्न रूप कहे गए हैं,

शायना प्रदक्षिणाम:-

शयन प्रदक्षिणम लेटे हुए आसन में भक्तो द्वारा किया जाता है। इसकी शुरुआत गर्भगृह के सामने स्थित साष्टांग नमस्कार से होती है। साष्टांग नमस्कार में, भक्तों के शरीर के छह हिस्से जमीन को छूते हैं। इस प्रकार माथा, छाती, पेट, हाथ, घुटने और पैर के तलवे जमीन से स्पर्श करते हैं। मुड़े हुए हाथों को हमेशा देवता की ओर निर्देशित किया जाएगा। इस मुद्रा में, भक्त प्रदक्षिणा पथ पर परिक्रमा करते हैं। भक्तों के रिश्तेदार और दोस्त उन्हें मदद करते हैं। ये बहुत कठिन होता है।

प्रदक्षिणाओं की संख्या :-

प्रत्येक देवता के लिए, किए जाने वाले प्रदक्षिणाओं की न्यूनतम संख्या अलग अलग होती है।

  • गणेश जी की :- 1 or 3
  • हनुमान जी की :– 3
  • शिव जी की : आधा या 3
  • विष्णु जी की : 3 or 4
  • अयप्पा जी की : 5
  • सुब्रह्मण्य (कार्तिकेय) जी की : 6
  • दुर्गा, देवी जी की : 1, 9 or 4
  • पीपल का पेड़ जी की : 7
  • सूर्य जी की :- 2 or 7

अगर आपके कुछ और सवालो के जवाब आप जानना चाहते है तो निचे कमेंट बॉक्स में लिख सकते है या हमे मेल कर सकते है। हमारी विरासत की टीम आपको जवाब जरूर देगी।

QUESTION/ANSWER Related to Vrindavan Parikrama:-

Q:vrindavan parikrama distance

Ans: -It usually takes two to three hours to go around Vrindavana. The parikrama path is 10 km (6 miles)

Q:- parikrama marg vrindavan

यह रास्ता बांके बिहारी जी मंदिर से एक सड़क पर है।या आप इसे कालिया घाट से शुरू कर सकते है। न समझ ए तो किसी वृन्दावन वासी संत से या निवासी से आप सहज पूछ सकते है।

नोट : अगर आप कुछ और जानते है या इसमें कोई त्रुटि है तो सुझाव और संशोधन आमंत्रित है।

परिक्रमा क्या है ?

भगवान को याद करने तथा उनसे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का। यह तरीका है परिक्रमा का, जो किसी धार्मिक स्थल के ईर्द-गिर्द की जाती है।

प्रसिद्ध परिक्रमा स्थान कौन कौन सी है ?

वृंदावन परिक्रमा (Vrindavan parikrama)
व्रजमण्डला परिक्रमा (Vraja Mandala parikrama)
गोवर्धन पर्वत(नाथ ) (Govardhan hill parikrama)
अयोध्या परिक्रमा ( Ayodhya parikrama)
गिरनार परिक्रमा ( Girnar parikrama )
कुरुक्षेत्र परिक्रमा ( Kurukshetra parikrama)
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