
जय गौर !!
श्री राधारमण विजयते !!
श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी(pundrik ji) माध्व गौडेश्वर वैष्णव पीठ के आध्यात्मिक वंश परंपरा के अंतर्गत आते है। वह अपने पूर्वजों के पद चिन्हों पर ही चल रहे हैं. वैष्णववाद परंपरा के एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक गुरु हैं। #ShriPundrikGoswamiJi #hamarivirasat
जन्म: 20 जुलाई 1988 जन्म स्थान : वृंदावन जीवन उद्देश्य :- श्री चैतन्य महाप्रभु के संदेश को विभिन्न वैष्णव शास्त्रों के व्याख्यान द्वारा दुनिया भर में प्रचारित कर रहे हैं, ताकि लोग जीवन के वास्तविक अर्थ को जानकर लाभ उठा सकें।
श्री माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी, प्रसिद्ध संत श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी जी महाराज के पोते और प्रसिद्ध भागवत वक्ता श्री श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी जी महाराज के पुत्र हैं। वह श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी (वृंदावन के प्रसिद्ध छह गोस्वामियों में से एक, जो स्वयं श्री चैतन्य महाप्रभु से प्रेरित और दीक्षित थे) के परिवार से संबंधित हैं, जिन्होंने 1542 में वृंदावन में राधा रमण मंदिर की स्थापना की थी और मंदिर परिसर में उनकी समाधि भी मौजूद है। गौड़ीय परम्परा के वंश में महाराज श्री 38वें आचार्य हैं।
नाम ही प्रभु का भव से पार लगायेगा ,
करुण पुकार सुनकर वो तुम्हे ह्रदय से लगायेगा।
श्री राधारमण विजयते !!
चैतन्य महाप्रभु भक्ति वंश के 38वें आचार्य हैं। श्री राधारमण मंदिर, वृंदावन के गोस्वामी। वह कई गौशालाएं, शैक्षिक परियोजनाएं और कल्याण ट्रस्ट चलाते हैं जो कई लोगों के जीवन को बेहतर बना रहे हैं। शास्त्रों के प्रति उनका समकालीन दृष्टिकोण उनकी बातों में विज्ञान और आध्यात्मिकता का मिश्रण देता है जो युवा पीढ़ी को पूरी तरह से प्रेरित करता है।
भारत के एक भाग के रूप में वह संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, लंदन, इटली, ज्यूरिख, स्विटजरलैंड आदि में भी कथा सुनाते हैं। एक उत्कृष्ट वक्ता, वह हिंदी, बृज और संस्कृत के अलावा अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोलते हैं और इसलिए भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। जिस उम्र में बच्चे केवल खेल और खिलौनों में व्यस्त रहते हैं उस उम्र में महाराज जी ने अपने प्रवचनों की गंभीरता से दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। 1995 में, महज 7 वर्ष की उम्र में महाराज जी ने पहली बार भक्तों को भागवत गीता का ज्ञान दिया। इनकी शिक्षा ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से हुई है।
गौड़ीय परम्परा के वंश में महाराज श्री 38वें आचार्य हैं। 21 वर्ष की आयु में श्री पुंडरीक गोस्वामी जी अपने पिता श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी के बाद वैजयंती आश्रम वृंदावन की गद्दी पर आसीन हुऐ थे।। पुंडरीक गोस्वामी जी श्रीमद्भागवतम, चैतन्य चरितामृत, राम कथा और भगवद गीता पर अपने आध्यात्मिक प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध हैं।
पुंडरिक गोस्वामी का जन्म 20 जुलाई 1988 को उत्तर प्रदेश के वृंदावन शहर में श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी और सुकृति गोस्वामी के घर हुआ था। उनके पिता श्रीभूति कृष्ण गोस्वामी और दादा अतुल कृष्ण गोस्वामी प्रसिद्ध आध्यात्मिक वक्ता रहे हैं। इस परिवार में 38 पीढ़ियों से भगवद् कथा और अन्य आध्यात्मिक प्रवचनों की परंपरा चली आ रही है। पुंडरीक गोस्वामी ने सात साल की उम्र से ही गीता पर प्रवचन देना शुरू कर दिया था।
उन्होंने मथुरा में अपना स्कूल पूरा किया और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में स्नातक किया। उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, लेकिन अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद भारत वापस आ गए और फिर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कोर्स पूरा किया।
वह एक प्रसिद्ध कथा वाचक (आध्यात्मिक प्रवचन जिसमें जीवन का वर्णन और हिंदू देवताओं की शिक्षाएं शामिल हैं) हैं। उनके आध्यात्मिक प्रवचन ज्यादातर श्री कृष्ण भगवान के बारे में होते हैं। उन्हें आध्यात्मिकता और धर्म पर बोलने के लिए टेड टॉक के लिए आमंत्रित किया गया है। वह कृष्ण भावनामृत का प्रसार करने के लिए गोपाल क्लब चलाते हैं। श्री पुंडरिक गोस्वामी जी बचपन से ही एक प्रभावशाली आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता रहे हैं। उन्होंने श्रीमद् भागवत कथा, श्री राम कथा, श्री चैतन्य चरित्रामृत कथा, श्रीमद् भागवत गीता का पाठ किया है और वे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और टेड आदि जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों पर प्रेरक उपदेश भी देते हैं।
परमाराध्य पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज जी की धर्मपत्नी /जीवन संगिनी का नाम श्रीमती रेणुका पुंडरीक गोस्वामी जी है। इनके तीन बहुत प्यारे बच्चे है। जिनमें एक प्यारी से लाली है जिनका नाम श्री तथ्या गोस्वामी , दूसरी लाली का नाम श्री तान्या गोस्वामी और पुत्र का नाम_________ गोस्वामी है।
उनका मुख्य उद्देश्य युवाओं को भारत की धार्मिक और भक्ति विरासत से अवगत कराना है और उनकी शिक्षाएँ मुख्य रूप से किसी के भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के बीच संतुलन पर आधारित हैं। उन्होंने गोपाल क्लब और निमाई पाठशाला जैसे कई युवा कार्यक्रम स्थापित किए हैं। उनके पास अंग्रेजी, हिंदी और संस्कृत में विशेषज्ञता रखने वाला बहुभाषी दृष्टिकोण है।
उन्होंने विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों और कई इंटरफेथ सम्मेलनों में गौड़ीय सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व किया है।
वह प्रभावी रूप से गौशालाओं, मंदिरों, वैदिक विद्यालयों सहित कई गैर सरकारी संगठनों और समाज कल्याण ट्रस्टों को चला रहे हैं जो समाज को रहने के लिए एक बेहतर जगह बनाने में मदद करते हैं।
उन्होंने कई किताबें और लेख लिखे हैं जो सभी प्रमुख प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के साथ-साथ वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर भी प्रकाशित हुए हैं।
Shri Radha Raman Temple, Vrindavan (श्री राधा रमण जी मंदिर, वृंदावन) सालिग्राम शिला से स्व-प्रकट देवता, 500 साल से अधिक पुराना विरासत मंदिर जहां वृंदावन में पूजा के मानक उच्चतम हैं। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने राधा रमण मंदिर की स्थापना की। वह वृंदावन के छह गोस्वामियों में से एक हैं जिन्होंने श्री चैतन्य महाप्रभु के सिद्धांतों का सख्ती से पालन किया। यह सुंदर देवता एक शालिग्राम सिला से स्वयं प्रकट हुआ है और एक रहस्यपूर्ण मुस्कान है। गोपाल भट्ट गोस्वामी जी ने वर्ष 1542 इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
निमाई पाठशाला कृष्ण चेतना के प्रसार के सबसे अनोखे रूपों में से एक है। भक्तों का मार्गदर्शन करने का शिक्षण पैटर्न और रचनात्मक तरीका हमारा मुख्य आकर्षण है। यहां, हम सभी आयु वर्ग के भक्तों का कक्षाओं के साथ स्वागत करते हैं, जो आपके घर में आराम से ऑनलाइन आयोजित की जाती हैं! मुख्य रूप से श्रीमती रेणुका पुंडरीक गोस्वामी जी है। निमाई पाठशाला की शिक्षा देती है। #NimaiPaathshala
वर्तमान गतिविधियां(This information is taken from the official Facebook account of Maharaj Shri.) :-
भविष्य की योजनाएं
तनुका सेवा:-
यदि वित्तीय सहायता संभव नहीं है तो तनुजा सेवा द्वारा परियोजनाओं को बढ़ावा देने और समर्थन देने में भाग लें
मानसी सेवा:-
प्रतिदिन हरे कृष्ण महामंत्र का एक माला जप करके आध्यात्मिक रूप से सहयोग करें और प्रार्थना करें।
अधिक जानकारी के लिए हमें ईमेल करें
[email protected]
यह हमारी विरासत(Hamari virasat) की छोटी सी कोशिश है जो हमारे भारतीय संतों की, महंतों की महापुरुषों की महानता को आने वाली पीढ़ियों को दिखा सके। वह पढ़ सके कि वह जिस भूमि पर रहते हैं वहां के संत महापुरुष ने कितने त्याग किए हैं उनके जीवन को भारतीय संस्कृति से जोड़ने के लिए आध्यात्मिकता से जोड़ने के लिए। आध्यात्मिकता हमारे जीवन का प्राण है जिससे हमारे जीवन सही दिशा की ओर अग्रसर होता है। हमारी विरासत भारत के सभी संतो के बारे में लिस्टिंग कर रही है ,जिससे कि वर्तमान और आने वाली भावी पीढ़ियों को आसान से अपने संत महापुरुषों के बारे में जान सकें और अपना हृदय परिवर्तन कर सकें। सभी काम करते हुए ईश्वर को न भूले।
नोट : अगर कुछ लिखने में त्रुटि हो गयी हो तो उसके लिए हम क्षमा-प्रार्थी है। अगर आप कुछ और जानते है तो सुझाव और संशोधन आमंत्रित है। please inbox us.