कृष्णा कृपा कटाक्ष स्तोत्र(krishna kripa kataksh stotra)

कृष्णा कृपा कटाक्ष स्तोत्र(krishna kripa kataksh stotra)

कृष्णा कृपा कटाक्ष स्तोत्र(shri krishna kripa kataksh stotra) में 8 श्लोक है। ये श्लोक श्री कृष्णा कृपा की अनुभूति कराता है। इस स्तोत्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है। ये हम सभी जानते है भगवान श्रीकृष्ण मंगलरूप हैं। उनका स्वरूप सत्य चित आनंदमय है। उनके नाम-रूप-लीला का गान भी मंगलरूप हैं। उनके उच्चारण से व्यक्ति मंगलमय/भक्तिमय हो जाता है। krishna kripa kataksh

कृष्ण नाम का संकीर्तन वाणी को शुद्ध कर मधुर रस का आस्वादन कराकर आत्मा को पावन कर देता है और भक्त भगवान के साक्षात्कार के योग्य बन जाता है। आकर्षण-मन्त्र की तरह कृष्ण-नाम चित्त को आकर्षित करने वाला है। यदि कृष्ण-नाम कण्ठ के सिंहासन को स्वीकार कर लेता है तो यमपुरी का स्वामी उस कृष्णभक्त के सामने क्या है? यमराज के दूतों की क्या हस्ती है? मोक्षलक्ष्मी उस भक्त के चरणकमल में आकर स्वयं लोटने लगती है।

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भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ब्रह्माजी से कहते हैं–जो कृष्ण ! कृष्ण !! कृष्ण !!!–यों कहकर मेरा प्रतिदिन स्मरण करता है, उसे जिस प्रकार कमल जल को भेद कर ऊपर निकल जाता है, उसी प्रकार मैं नरक से उबार लेता हूँ।

।। श्रीकृष्ण से प्रार्थना ।।

मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।

अर्थात्– जिनकी कृपा से गूंगे बहुत बोलने लगते हैं; पंगु पहाड़ को लांघ जाते हैं, उन परमानन्दस्वरूप माधव की मैं वन्दना करता हूँ।
पूर्ण ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए कोई उपाय है तो वह है केवल भगवान का स्मरण व कीर्तन। भगवान स्वयं नारदजी से कहते हैं–

नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।

अर्थात्–भगवान तो केवल वहीं विराजते हैं, जहां उनके भक्त उनका गुणगान करते हैं। ‘कलौ केशवकीर्त्तनात्’–कलिकाल में भगवान केशव का कीर्तन ही भवसागर से पार होने का एकमात्र साधन है।

श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (krishna kripa kataksh stotra) भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है। बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है। ये इस प्रकार है :-

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र(krishna stotram):-

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,

अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥१॥

भावार्थ–व्रजभूमि के एकमात्र आभूषण, समस्त पापों को नष्ट करने वाले तथा अपने भक्तों के चित्त को आनन्द देने वाले नन्दनन्दन को सदैव भजता हूँ, जिनके मस्तक पर मोरमुकुट है, हाथों में सुरीली बांसुरी है तथा जो प्रेम-तरंगों के सागर हैं, उन नटनागर श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥२॥

भावार्थ–कामदेव का मान मर्दन करने वाले, बड़े-बड़े सुन्दर चंचल नेत्रों वाले तथा व्रजगोपों का शोक हरने वाले कमलनयन भगवान को मेरा नमस्कार है, जिन्होंने अपने करकमलों पर गिरिराज को धारण किया था तथा जिनकी मुसकान और चितवन अति मनोहर है, देवराज इन्द्र का मान-मर्दन करने वाले, गजराज के सदृश मत्त श्रीकृष्ण भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ।

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,

युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥३॥

भावार्थ–जिनके कानों में कदम्बपुष्पों के कुंडल हैं, जिनके अत्यन्त सुन्दर कपोल हैं तथा व्रजबालाओं के जो एकमात्र प्राणाधार हैं, उन दुर्लभ भगवान कृष्ण को नमस्कार करता हूँ; जो गोपगण और नन्दजी के सहित अति प्रसन्न यशोदाजी से युक्त हैं और एकमात्र आनन्ददायक हैं, उन गोपनायक गोपाल को नमस्कार करता हूँ।

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,

समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥४॥

भावार्थ–जिन्होंने मेरे मनरूपी सरोवर में अपने चरणकमलों को स्थापित कर रखा है, उन अति सुन्दर अलकों वाले नन्दकुमार को नमस्कार करता हूँ तथा समस्त दोषों को दूर करने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले और समस्त व्रजगोपों के हृदय तथा नन्दजी की वात्सल्य लालसा के आधार श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,

दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥५॥

भावार्थ–भूमि का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले कर्णधार श्रीयशोदाकिशोर चित्तचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण सर्वदा दिव्य सखियोंसे सेवित, नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नन्दलाल को मेरा नमस्कार है।

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।
नवीन गोपनागरं नवीनकेलि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।६।।

भावार्थ–गुणों की खान और आनन्द के निधान कृपा करने वाले तथा कृपा पर कृपा करने के लिए तत्पर देवताओं के शत्रु दैत्यों का नाश करने वाले गोपनन्दन को मेरा नमस्कार है। नवीन-गोप सखा नटवर नवीन खेल खेलने के लिए लालायित, घनश्याम अंग वाले, बिजली सदृश सुन्दर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामिकुंजमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामिकुंजनायकम्।।७।।

भावार्थ–समस्त गोपों को आनन्दित करने वाले, हृदयकमल को प्रफुल्लित करने वाले, निकुंज के बीच में विराजमान, प्रसन्नमन सूर्य के समान प्रकाशमान श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। सम्पूर्ण अभिलिषित कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चितवन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंजनायक को मेरा नमस्कार है।

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।८।।

भावार्थ–चतुरगोपिकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन करने वाले, कुंजवन में बढ़ी हुई विरह अग्नि को पान करने वाले, किशोरावस्था की कान्ति से सुशोभित अंग वाले, अंजन लगे सुन्दर नेत्रों वाले, गजेन्द्र को ग्राह से मुक्त करने वाले, श्रीजी के साथ विहार करने वाले श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

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श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ का फल:-

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र(krishna kripa kataksh stotra) पाठ का फल अनंत है।

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,

भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥९॥

प्रभो! मेरे ऊपर ऐसी कृपा हो कि जहां-कहीं जैसी भी परिस्थिति में रहूँ, सदा आपकी सत्कथाओं का गान करूँ। जो पुरुष इन दोनों-राधा कृपाकटाक्ष व श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष अष्टकों का पाठ या जप करेगा, वह जन्म-जन्म में नन्दनन्दन श्यामसुन्दर की भक्ति से युक्त होगा और उसको साक्षात् श्रीकृष्ण मिलते हैं। radha kripa kataksh

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सिर्फ 50 किताब बचे है। Order Now श्री राधा कृपा कटाक्ष किताब को इतना प्यार देने के लिए आप सभी का बहुत बहुत आभार। …Link Upar diya hai ..श्री राधे

इस किताब में वो सारे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ने के लिए मिलेंगे जो राधा कृष्ण की जल्द ही कृपा प्राप्त करवाता है। क्युकी ये सभी उनके परम भक्तो के द्वारा लिखा गया है।


इस किताब में आप ये सब पढ़ पाएंगे जब चाहे जहाँ चाहे और साथ ही ये आप किसी को उपहार में भी दे सकते है। जिनका राधा कृष्ण के प्रति प्रेम भाव है। आप अनंत कृपा के भागी होंगे।

  • श्री राधा कृपा कटाक्ष क्या है ?
  • किसने लिखा है और क्यों?
  • इस स्तोत्र के पाठ का फल?
  • श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र(हिंदी अर्थो के साथ)
  • श्री राधा चालीसा
  • श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र(हिंदी अर्थो के साथ)
  • श्री कृष्ण चालीसा
  • श्री राधा कृष्ण प्राचीन मंदिर
  • श्री राधा कृष्ण एक प्रेम भरी सीख
  • गोपी गीत( हिंदी अर्थो के साथ)
  • श्री राधा कवचम्
  • श्री राधा जी के 32 नाम
  • युगलकिशोराष्टक(श्रीराधाकृष्ण की संयुक्त उपासना)-हिंदी अर्थो के साथ
  • यमुनाष्‍टक ( व्यक्तिगत कमजोरियों पर विजय पाने के लिए)-हिंदी अर्थो के साथ
  • राधा कृष्ण चमत्कार की कथाएं
  • राधा कृष्ण भजन भाव( कीर्तन)
  • दिव्य मंत्र व श्लोक
  • जीवन परिवर्तित सन्देश(राधा कृष्ण से जुडी हुई)

krishna kripa kataksha lyrics in english:-

krishna stotra-krishna stotram किसे कहते है ?

shri krishna kripa kataksh stotra को कहते है.

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र कितने श्लोक हैं ?

8 श्लोक हैं.

will krishna come again?

Yes. he is always with you. Choose devotinal life you will get back to him. Hare krishna

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