श्री राधा अष्टमी मंत्र राधा जी के दिव्य मंत्र को पढ़े

कहते है श्री कृष्णा के वाम भाग से राधिका जी का प्राकट्य हुआ। उन्हें प्रेम की देवी भी कहते है क्युकी उनका प्रेम निर्मल और निस्वार्थ था। वह परम शांत, परम कमनीय और सुशील थीं। श्रीकृष्ण के अर्द्धांग से प्रकट होने के कारण वे श्रीकृष्णस्वरूपा ही हैं। radha ashtami mantra

राधा-कृष्‍ण का निश्‍छल प्रेम इस दुनिया से परे है। एक बार भगवान कृष्‍ण ने स्‍वयं शंकरजी से कहा- ‘हे रुद्र! यदि मुझे वश में करना चाहते हो तो मेरी प्रियतमा श्रीराधा का आश्रय ग्रहण करो।’ इसी तरह श्रीराधा को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्ण की आराधना करनी चाहिए। अर्थात सभी वैष्णवों को इस युगलस्वरूप की आराधना करनी चाहिए।

श्री राधा अष्टमी के अवसर पर, विशेष रूप से श्री राधा रानी की पूजा और ध्यान के लिए मंत्रों का जाप करना बहुत लाभकारी होता है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण मंत्र दिए जा रहे हैं जिन्हें आप राधा अष्टमी पर जप सकते हैं:

1. श्री राधा रानी के विशेष मंत्र:

  • “ॐ श्री राधायै नमः”
    (Om Shri Radhaayai Namah)
    इस मंत्र का जाप श्री राधा रानी के प्रति भक्ति और सम्मान को व्यक्त करता है।
  • “ॐ श्री कृष्णाय राधायै नमः”
    (Om Shri Krishnaya Radhaayai Namah)
    इस मंत्र के माध्यम से आप श्री कृष्ण और राधा रानी दोनों की आराधना कर सकते हैं।
  • “ॐ श्री राधे श्री कृष्णाय नमः”
    (Om Shri Radhe Shri Krishnaya Namah)
    यह मंत्र राधा और कृष्ण के अद्वितीय प्रेम और भक्ति को समर्पित है।

2. श्री राधा रानी की पूजा के लिए मंत्र:

  • “ॐ ह्लीं श्री राधायै नमः”
    (Om Hleem Shri Radhaayai Namah)
    इस मंत्र का जाप करने से राधा रानी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में प्रेम व समर्पण की भावना जागृत होती है।
  • “ॐ राधे चंद्राय नमः”
    (Om Radhe Chandraya Namah)
    राधा रानी को चंद्रमा की तरह सुंदर और दिव्य मानते हुए इस मंत्र का जाप करें।

3. राधा कृष्ण के संयुक्त मंत्र:

  • “ॐ श्री कृष्णाराधाय नमः”
    (Om Shri Krishnaraadhaya Namah)
    इस मंत्र से कृष्ण और राधा की पूजा करके आप दोनों के दिव्य प्रेम और आशीर्वाद को प्राप्त कर सकते हैं।
  • “ॐ श्री राधा कृष्णाय नमः”
    (Om Shri Radha Krishnaya Namah)
    यह मंत्र राधा और कृष्ण के मिलन और उनके प्रेम को समर्पित है, और यह आपके जीवन में भी प्रेम और शांति लाने में सहायक होता है।

4. श्री राधा रानी के स्तोत्र मंत्र:

  • “श्री राधा पद्मालय नमः”
    (Shri Radha Padmaalaya Namah)
    यह मंत्र राधा रानी के चरणों की पूजा और उनके चरणों में निवास करने की प्रार्थना करता है।

ध्यान और पूजा के दौरान इन मंत्रों का जाप करने से राधा रानी की कृपा प्राप्त होती है और भक्ति की भावना में वृद्धि होती है। इन मंत्रों का जाप शांति और श्रद्धा के साथ करें और अपने जीवन को राधा रानी के दिव्य प्रेम से भर दें।

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श्रीराधायै स्‍वाहा

य‍ह मंत्र धर्म, अर्थ आदि को प्रकाशित करने वाला है। राधा अष्‍टमी के दिन 108 बार जप करने से राधा रानी की विशेष ..कृपा आपको प्राप्‍त होती है।

सप्‍ताक्षर राधामंत्र:

ऊं ह्नीं श्रीराधायै स्‍वाहा।

अष्‍टाक्षर राधामंत्र:-

ऊं ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।

ऊं ह्रीं श्रीं राधिकायै नम:।


इस मंत्र को सर्व कार्य सिद्धि मंत्र बताया गया है। इस मंत्र का 16 लाख बार जप करने से भक्‍तों को हर कार्य में सफलता प्राप्‍त होती है।

भगवान नारायण द्वारा श्रीराधा की स्तुति

नमस्ते परमेशानि रासमण्डलवासिनी।

रासेश्वरि नमस्तेऽस्तु कृष्ण प्राणाधिकप्रिये।।

रासमण्डल में निवास करने वाली हे परमेश्वरि ! आपको नमस्कार है। श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हे रासेश्वरि ! आपको नमस्कार है।

ब्रह्मा विष्‍णु द्वारा राधा जी की वंदना

नमस्त्रैलोक्यजननि प्रसीद करुणार्णवे।

ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्देवैर्वन्द्यमान पदाम्बुजे।।

ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं के द्वारा वन्दित चरणकमल वाली हे त्रैलोक्यजननी ! आपको नमस्कार है। हे करुणार्णवे ! आप मुझ पर प्रसन्न होइए।

मन्त्र का जप:-

सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में रासमण्डल में मूलप्रकृति श्रीराधा के उपदेश करने पर इस मन्त्र का जप किया था। फिर उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने भगवान नारायण को इसका उपदेश किया। इस प्रकार यह परम्परा चली आयी। श्रीराधा-मन्त्र कल्पवृक्ष के समान साधक की मनोकामना पूर्ति करता है।

वन्दे वृन्दावनानन्दां राधिकां परमेश्वरीम्।
गोपिकां परमां श्रेष्ठां ह्लादिनीं शक्तिरुपिणीम्।।

भगवान श्रीकृष्ण के वामभाग से परम शान्त, परम कमनीय मूलप्रकृतिरूप में श्रीराधाजी प्रकट हुईं। श्रीकृष्ण के अर्द्धांग से प्रकट होने के कारण वे श्रीकृष्णस्वरूपा ही हैं। श्रीराधा श्रीकृष्ण की समस्त शक्तियों, लीलाओं और गुणों की अधीश्वरी हैं।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गोलोक में श्रीराधा का पूजन:-

श्रीराधा की उपासना करने वाले साधक को अपने को श्रीराधा की सेविकाओं में से एक तुच्छ सेविका मानकर उपासना करनी चाहिए और सदैव यही भावना करनी चाहिए कि मैं श्रीराधा की दासियों की दासी बनी रहूँ। श्रीराधा की सेविकाओं की सेवा में सफल होने पर ही श्रीराधा की सेवा का अधिकार मिलता है।

  • श्रीराधामाधव की युगल उपासना गोपीभाव से की जाती है;
  • गोपीभाव का अर्थ है–हर क्रिया द्वारा श्रीराधामाधव को सुख पहुंचाना; अपने सुख को भुलाकर केवल श्रीकृष्णसुख की ही चिन्ता करना।
  • गोपीभाव की प्राप्ति के लिए साधक को काम, क्रोध, लोभ, द्रोह का त्याग करना आवश्यक है।

नारदपांचरात्र:-

बताया गया है कि चिरकाल तक श्रीकृष्ण की आराधना करके मनुष्यों की जो-जो कामना पूर्ति होती है, वह श्रीराधा की उपासना से स्वल्पकाल (थोड़े से समय) में ही सिद्ध हो जाती है। प्रसन्न होकर वे साधक को सभी अभीष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं।

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शास्त्र में श्रीराधा ‘राधा’ शब्द से ही सभी अभीष्ट कामनाओं को देने वाली कहलाती हैं–‘राध्नोति सकलान् कामान् ददाति इति राधा।’ वे ही जगन्माता और श्रीकृष्ण जगत्पिता हैं। पिता से माता सौगुनी श्रेष्ठ मानी गयी है। भवसागर से पार उतारने की शक्ति श्रीकृष्ण से बढ़कर श्रीराधा में है। इसे कवि बिहारी ने इस दोहे में वर्णित किया है–

मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि सोइ।
जा तनकी झाँईं परै स्याम हरित दुति होइ।।

भगवान नारायण द्वारा श्रीराधा की स्तुति

श्रीराधा का ध्यान:-

श्रीवृन्दावन में यमुनातट पर सघन वनकुंज है। जहां तरह-तरह के पुष्प खिले हैं, जिन पर भ्रमर गुंजार कर रहे हैं। यमुनाजी में वायु के झोकों से मन्द-मन्द तरंगें नाच रही हैं, तरह-तरह के रंगों के कमल खिल रहे हैं। वहां श्रीराधामाधव एक कदम्ब के वृक्ष के नीचे विराजित हैं। श्रीकृष्ण के वामभाग में श्रीराधाजी हैं।

हेमाभां द्विभुजं वराभयकरां नीलाम्बरेणादृतां
श्यामक्रोडविलासिनीं भगवतीं सिन्दूरपुज्जोज्ज्वलाम्।
लोलाक्षीं नवयौवनां स्मितमुखीं बिम्बाधरां राधिकां
नित्यानन्दमयीं विलासनिलयां दिव्यांगभूषां भजे।।

अर्थात्–’जिनके गोरे-गोरे अंगों की हेममयी आभा है, जिनके दो भुजाएं हैं और दोनों हाथों में वर एवं अभय की मुद्रा धारण करती हैं, नीले रंग की रेशमी साड़ी जिनके श्रीअंगों का आवरण बनी हुई है, जो श्यामसुन्दर के अंक में विलास करती हैं, सिन्दूरपुंज से जिनकी सौन्दर्यश्री और भी सुन्दर हो गयी है, चपल नयन, नित्य नूतन यौवन, मुख पर मन्दहास की छटा तथा विम्बाफल की लालिमा को तिरस्कृत करने वाले लाल अधर (होंठ) , जो नित्य आनन्दमयी है, विलास की आवासभूमि हैं और जिनके अंगों में दिव्य आभूषण हैं, उन श्रीराधिका का मैं चिन्तन करता हूँ।’

श्रीराधा का विग्रह मानो शोभाश्री का लहराता हुआ अनन्त सागर है। शान्तस्वरूपा श्रीराधा गोपांगनाओं की अधीश्वरी के रूप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान हैं।

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सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने:-

ॐ ह्रीं श्रीराधिकायै नम:।

सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गोलोक में रासमण्डल में मूलप्रकृति श्रीराधा के उपदेश करने पर इस मन्त्र का जप किया था। फिर उन्होंने विष्णु को, विष्णु ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने धर्म को और धर्म ने भगवान नारायण को इसका उपदेश किया। इस प्रकार यह परम्परा चली आयी। श्रीराधा-मन्त्र कल्पवृक्ष के समान साधक की मनोकामना पूर्ति करता है।

श्रुतियों में श्रीराधा के अट्ठाईस नाम:-

१. राधा,
२. रासेश्वरी,
३. रम्या,
४. कृष्णमन्त्राधिदेवता,
५. सर्वाद्या,
६. सर्ववन्द्या,
७. वृन्दावनविहारिणी,
८. वृन्दाराध्या,
९. रमा,
१०. अशेषगोपीमण्डलपूजिता,
११. सत्या,
१२. सत्यपरा,
१३. सत्यभामा,
१४. श्रीकृष्णवल्लभा,
१५. वृषभानुसुता,
१६. गोपी,
१७. मूलप्रकृति,
१८. ईश्वरी,
१९. गन्धर्वा,
२०. राधिका,
२१. आरम्या,
२२. रुक्मिणी,
२३. परमेश्वरी,
२४. परात्परतरा,
२५. पूर्णा,
२६. पूर्णचन्द्रनिभानना,
२७. भुक्तिमुक्तिप्रदा,
२८. भवव्याधिविनाशिनी।

श्रीब्रह्माजी के अनुसार जो व्यक्ति श्रीराधा के इन अट्ठाईस नामों का पाठ करता है, वह संसार के आवागमन से मुक्त हो जाता है।

Additional Mantras for Shri Radha Rani:

  1. “ॐ श्री राधायै चंद्राय नमः”
    (Om Shri Radhaayai Chandraya Namah)
    This mantra venerates Radha Rani as the embodiment of divine beauty and serenity.
  2. “ॐ ह्लीं श्री राधायै नमः”
    (Om Hleem Shri Radhaayai Namah)
    A powerful mantra is invoking the bija (seed) sound “Hleem” to attract Radha Rani’s blessings.
  3. “ॐ श्री राधा कृष्ण प्रेमाय नमः”
    (Om Shri Radha Krishna Premaaya Namah)
    This mantra is dedicated to the divine love of Radha and Krishna, seeking their eternal blessings.
  4. “ॐ श्री राधायै सरस्वत्यै नमः”
    (Om Shri Radhaayai Sarasvatyai Namah)
    This mantra combines the reverence for Radha with the wisdom and learning of Saraswati, seeking divine knowledge and grace.
  5. “ॐ श्री राधा कृष्णाय स्वाहा”
    (Om Shri Radha Krishnaya Swaha)
    This mantra offers salutations to Radha and Krishna, acknowledging their divine presence.
  6. “ॐ राधायै महालक्ष्मयै नमः”
    (Om Radhaayai Mahalakshmyai Namah)
    This mantra honors Radha Rani as the supreme form of Lakshmi, symbolizing abundance and prosperity.
  7. “ॐ श्री राधायै सच्चिदानन्दाय नमः”
    (Om Shri Radhaayai Satchidanandaya Namah)
    This mantra praises Radha Rani as the embodiment of eternal truth, consciousness, and bliss.
  8. “ॐ श्री राधा कृष्ण प्रियाय नमः”
    (Om Shri Radha Krishna Priyaaya Namah)
    This mantra honors Radha Rani as the dearest beloved of Krishna, seeking her divine favor and affection.
  9. “ॐ राधे राधे नमः”
    (Om Radhe Radhe Namah)
    It is a simple yet profound mantra that expresses deep devotion and reverence for Radha Rani.
  10. “ॐ श्री राधा कृष्ण प्रेम स्वरूपाय नमः”
    (Om Shri Radha Krishna Prema Swaroopaaya Namah)
    This mantra acknowledges Radha and Krishna as the personification of divine love, seeking their blessings.
  11. “ॐ राधा कृष्ण चित्ताय नमः”
    (Om Radha Krishna Chittaya Namah)
    This mantra focuses on Radha and Krishna as the center of all consciousness and devotion.
  12. “ॐ श्री राधा कृष्ण वियोगाय नमः”
    (Om Shri Radha Krishna Viyogaya Namah)
    This mantra is dedicated to seeking solace and strength through the divine love of Radha and Krishna, especially during separation or distress.
  13. “ॐ श्री राधा राधे नमः”
    (Om Shri Radha Radhe Namah)
    This mantra is a call to Radha Rani, honoring her divine essence and seeking her eternal blessings.
  14. “ॐ राधायै प्रियं नमः”
    (Om Radhaayai Priyam Namah)
    This mantra seeks Radha Rani’s grace and affection, acknowledging her as the beloved of Krishna and a source of divine love.
  15. “ॐ श्री राधा कृष्ण चन्द्राय नमः”
    (Om Shri Radha Krishna Chandraaya Namah)
    This mantra venerates Radha and Krishna, specifically honoring their divine presence as the moon of the spiritual realm.
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  • Mitali

    Mitali

    सितम्बर 22, 2023

    Thank you

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