मौनी अमावस्या(Mauni Amavasya) आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परम आवश्यक है।

मौनी अमावस्या(Mauni Amavasya) आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परम आवश्यक है।

वैसे तो अमावस्या तिथि का आरम्भ 31 जनवरी 2022 दिन सोमवार को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट से ही आरम्भ हो जाएगा परन्तु उदय कालिक महत्व के कारण स्नान, दान एवं मौनी अमावस्या 1 फरबरी दिन मंगलवार को होगा। मंगलवार के दिन अमावस्या पड़ने के कारण इसे भौमवती अमावस्या   भी कहा जा सकता है ।भौमवती अमावस्या का मणि -कांचन योग गंगा -स्नान के महत्व को कई गुना   बढ़ाने वाला होगा । वही मौनी अमावश्या के दिन पितृगण पितृलोक से आशा करते है और इस दिन किया गया जप , तप , ध्यान ,स्नान , दान ,यज्ञ , हवन कई गुना फल देता है । mauni amavasya 2022 kab hai

माघ मास की अमावस्या:-

माघ मास की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस दिन मौन रहने का बड़ा महत्व है। व्रत रखने वालों को मौन रहते हुए व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। इस बार मौनी अमावस्या 1 फरवरी को मनाई जाएगी। मौनी अमावस्या के दिन श्रीहरि का पूजन किया जाता है। कई श्रद्धालु मौनी अमावस्या के दिन व्रत भी रखते हैं। मौनी अमावस्या के दिन मौन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार उच्चारण करके जाप करने से कई गुणा अधिक पुण्य मौन रहकर हरि का जाप करने से मिलता है। आइए जानते हैं मौन व्रत क्या है और उसका क्या महत्व है। 

मौन या शांत रहने का तात्पर्य :-

मौन या शांत रहने का तात्पर्य है कि भक्त बाहरी जीवन से  दूर रहकर स्वयं के भीतर क्या चल रहा है उसका आत्ममंथन करे। मन के भीतर जो भी कमियाँ नजर आ रही हैं या जो भी गलतियां समझ ईश्वर की आरधना में लीन होकर अपनी कमियों को दूर करें। मौन का मतलब अपने मन को एकाग्र करना होता है और प्रभु के नाम का स्मरण करना होता है। इससे आपके अंदर पनप रही नकारात्मकता दूर होगी और

शास्त्रों के अनुसार:-

शास्त्रों के अनुसार अमावश्या के विषय में कहा गया है कि इस दिन मन , कर्म तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए केवल बंद होंठो से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  तथा “ॐ नमः शिवाय ,या “ॐ नमो नारायण , या विष्णु स्तुति मन्त्र 

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् 

मौन रहने से आत्मबल मिलता है। 

मौन रहने का महत्व:-

आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परम आवश्यक है। मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है। इसलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बनाया गया है। आवश्यकता से अधिक बोलने का कुप्रभाव मस्तिष्क व उसके अंगों पर पड़ता है। यही कारण है कि लंबा भाषण देने वाले भाषण के बीच में जल पीते रहते हैं। धार्मिक कार्य कराने वाले, बोलकर मंत्र, जप आदि करने वाले घी का सेवन करते हैं ताकि उनका स्वर न फटे या गला न रुंधे आदि। ऋषि मुनि एवं चिंतक मौन रहकर ही मनन चिंतन करते हैं। इससे उनकी मानसिक ऊर्जा बढ़ती है। मौन रहकर कार्य करने से ज्ञानेंद्रियां व कर्मेंद्रियां एकाग्र होती हैं और कार्य सुचारु रूप से होता है। विभिन्न धार्मिक कार्यों में भी मौन रहकर कार्य करने का विधान है।

विज्ञान में मौन का महत्व:-

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक व्यक्ति की शारीरिक रूप से आठ घंटे तक श्रम करने में जितनी ऊर्जा व्यय होती है उतनी ही एक घंटे तक बोलने में ऊर्जा क्षय होती है। जबकि दिमागी कार्य करने वाले की दो घंटे में उतनी ऊर्जा क्षय होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि जब हम बोलते हैं तो मुखगुहा में वायु के माध्यम से कंपन होता है। यह कंपन मुखगुहा से संबंधित धमनियों, नाड़ियों, शिराओं, मांसपेशियों को भी प्रकंपित करता है। फलस्वरूप मस्तिष्क में पीड़ा आदि विकार उत्पन्न होते हैं। गला सूखता है जिससे गले से संबंधित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। विज्ञान के अनुसार कम बोलना या मौन रहना शरीर के लिए फायदेमंद है। ज्यादा बोलने वालों को बीपी और हृदय से संबंधित बीमारियां भी होती हैं। ..

बन रहा है दर्लभ संयोग:-

मौनी अमावस्या के दिन ग्रहों का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में है और चार ग्रह सूर्य, बुध, चंद्र व शनि मकर राशि में महासंयोग बना रहे हैं। मान्यता है कि इस शुभ संयोग महोदय योग में कुंभ में डुबकी और पितरों का पूजन करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन सिद्धि योग सुबह 07.10 बजे तक है। इसके बाद व्याघृत योग लगेगा।

मौनी अमावस्या मुहूर्त :-

मौनी अमावस्या की तिथि आरंभ: 31 जनवरी, सोमवार, रात्रि  02: 18 मिनट से 

मौनी अमावस्या की तिथि समाप्त: 01 फरवरी, मंगलवार प्रातः 11: 15 मिनट तक

मौनी अमावस्या व्रत नियम:-

सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।

सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को अर्घ्य देना चाहिए। 

इसके बाद अनाज, वस्त्र, तिल, आंवला, कंबल, घी आदि का दान करना चाहिए। 

गाय को खाना खिलाना चाहिए।

बंद होंठो से “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय  तथा “ॐ नमः शिवाय ,या “ॐ नमो नारायण , या विष्णु स्तुति मन्त्र jaap kare.

हिंदू धार्मिक शास्त्रों में मौनी अमावस्या का विशेष महत्व है। कहते हैं मुख से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुना ज्यादा पुण्य मौन रहकर जाप करने से मिलता है। मौनी अमावस्या के दिन अगर दान से पहले सवा घंटे तक मौन रख लिया जाए तो दान का फल 16 गुना अधिक बढ़ जाता है और मौन धारण कर व्रत व्रत का समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। मौन रहकर स्नान दान करने से व्रती के जन्मों जन्मों के कष्ट मिट जाते हैं।

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