दंड महोत्सव - जानिए क्या है पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव?

दंड महोत्सव – जानिए क्या है पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव?

पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव:

पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव गौडीय संप्रदाय में मनाया जाने वाला उत्सव है, जो श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी पर स्वामी नित्यानंद प्रभु की विशेष कृपा को दर्शाता है | भक्ति एक महोत्सव है, भक्तो का हर क्षण उत्सव होता है क्यूंकि वे हर क्षण भगवान से जुड़े होते है | पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव भी एसा ही एक उत्सव है| यह उत्सव श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी पर स्वामी नित्यानंद प्रभु की विशेष कृपा ( pastimes ) को स्मरण करते हुए प्रतिवर्ष मनाया जाता है | यह उत्सव ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है | जैसा विचित्र सा भक्तो का मिजाज़ होता है, संतो की मस्ती होती है..
वाह वाह रे मौज फकीरां दी
ठीक वैसा ही ये उत्सव है इसे दंड महोत्सव ( A festival of punishment ) भी कहा जाता है |

क्यूँ कहते है इस उत्सव को दंड महोत्सव ?

परन्तु यह सुन कर एक ही विचार आता है की इसे दंड महोत्सव क्यूँ कहते है? आइये जानते है क्या है पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव क्या है ? यह लीला पश्चिम बंगाल के पानीहाटी में गंगा जी के तट पर घटित हुई थी |

श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी:

श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी गौडीय संप्रदाय के षड गोस्वामी में से एक है | इनका जन्म १४९५ में सप्तग्राम के निकट कृष्णपुर नगर में हुआ | ये बहुत ही संपन्न घर से थे, इनके पिता गोवेर्धन मजुमदार एक ज़मीदार थे, जिनका एश्वर्य इंद्र के समान था | परन्तु रघुनाथ दास गोस्वामी की सांसारिक विषय वासनाओ में कोई आसक्ति नही थी | बचपन में ही इन्हें हरिदास ठाकुर जैसे महान संत का संग प्राप्त हुआ, जिनसे वे भगवान के नाम, लीलाएं और चैतन्य महाप्रभु के बारे में सुनते थे |

रघुनाथ दास जी को महाप्रभु का आदेश:

सुनते सुनते उनके मन में श्री चैतन्य महाप्रभुजी के दर्शन की लालसा उत्पन्न हुई | एक बार रघुनाथ दास गोस्वामी चैतन्य महाप्रभु के दर्शन करने चले गए, वे घर छोड़ कर श्री चैतन्य महाप्रभु के साथ हरि नाम प्रचार करना चाहते थे| परन्तु महाप्रभु ने उन्हें घर लौट जाने को कहा और आश्वस्त किया की सही समय आने पर भगवान उन्हें माया के बन्धनों से मुक्त कर देंगे |

रघुनाथ दास जी की अनासक्ति:

अनमने मन से रघुनाथ गोस्वामी घर तो लौट गये पर उनका मन सदेव वहां से भाग जाने को करता| कई बार उन्होंने प्रयास भी किया पर उनके पिता सेवको के द्वारा उन्हें ढूंढ लेते | एक वर्ष बीत गया तो उनके पिता ने सोचा की रघुनाथ दास जी का विवाह करवा देने से वे गृहस्थ में आसक्त हो जायेंगे | यह सोच कर उन्होंने रघुनाथ दास जी का विवाह करवा दिया | परन्तु वे कभी घर में परिवार में आसक्त न हुए | एक और वर्ष बीता..

नित्यानंद प्रभु द्वारा रघुनाथ दास को दिया गया दंड ( कृपा ):

एक दिन उन्होंने सुना की नित्यानंद प्रभु गंगा के किनारे पानिहाटी गॉंव पधार रहे है | अपने पिता से आज्ञा पाकर वे नित्यानंद प्रभु के दर्शन करने गए | उनके पिता ने सेवको को साथ भेजा ताकि वो वैरागी न हो जाए | जब रघुनाथ दास गोस्वामी पानिहाटी पहुचे तो उन्होंने देखा की नित्यानंद प्रभु गंगा के किनारे एक बरगद के वृक्ष के नीचे एक शिला पर बैठे है| अनेक भक्तो और वैष्णवों से घिरे हुए है और उनके श्रीअंग से हजारो सूर्य के समान प्रकाश निकल रहा है | वे संकोच वश उनके निकट न जाकर उन्हें वृक्ष के पीछे से देख रहे थे | रघुनाथ जी ने दूर से नित्यानंद प्रभु को प्रणाम किया | कुछ भक्तो ने उन्हें देख लिया और नित्यानंद प्रभु को सुचना दी, तब नित्यानंद प्रभु ने रघुनाथ दास को अपने पास बुलाया और कहा की तुम एक चोर हो ( उनके निम्मित से यह उपदेश हम सबके लिए है क्यूंकि सब धन प्रभु का है और उस धन को सेवा में न लगाना चोरी ही है ) अब मै तुम्हे दंड दूंगा | ऐसा कहकर प्रभु नित्यानंद ने रघुनाथ दास के सर पर अपना एक चरण रखा ( यह थी उनकी विशेष कृपा )| और कहा की तुम्हारे पास जो धन है उससे तुम एक उत्सव का आयोजन करो | सभी को चिड़ा ( पोहा ) और दही का वितरण करो | यह दंड नही अपितु उनकी कृपा थी रघुनाथदासजी पर |
गुरुजनों के दंड में भी कृपा होती है!

चिड़ा-दही प्रसाद:

रघुनाथ दास जी तुरंत सभी आवश्य्क सामग्री लाये (पोहा , दूध , केला ,दही , चीनी , और अन्य सामग्री )| फिर उन्होंने आधे पोहे को उन्होंने दूध में मिलाया, आधे पोहे में मावा और माखन मिलाया | और सभी को दो-दो कुल्हड़ो में प्रसाद दिया |
प्रसाद – प्रभु का साक्षात् दर्शन!
प्रसाद की महिमा जानते हुए वहां इतने लोग आये की स्थान कम पड़ गया | भक्तो ने गंगाजी में खड़े होकर भी प्रसाद पाया |         जब सभी को प्रसाद मिल गया तब नित्यानंद प्रभु ने ध्यान में श्री चैतन्य महाप्रभु का आह्वाहन किया | प्रेम विह्वल हुए भक्तो के मध्य चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए| उन्होंने नित्यानंद प्रभु को अपने हाथो से चिड़ा दही खिलाया और स्वामी नित्यानंद प्रभु ने उन्हें | यह दृश्य देख कर सभी को बहुत हर्ष हुआ|
गुरु कृपा से छूटे जग जंजाल और जगे हरि मिलन की प्यास!
ये समय था रघुनाथ दास जी का माया के बन्धनों से छूटने का| फिर रघुनाथ गोस्वामीजी हरि नाम प्रचार प्रसार में लग गये | इसी उत्सव को प्रतिवर्ष बड़े उत्साह से पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव के रूप में मनाया जाता है |

पानीहाटी चिड़ा-दही महोत्सव:

  इस उत्सव में गौर निताई का विभिन्न फलो के रस से,पञ्च गव्य से महाअभिषेक करते है| उन्हें नौका में विराजमान करके विहार कराया जाता है |   मंदिरके जलाशय को सुगन्धित पुष्पोंसे सजाया जाता है| सभी भक्त गौर-निताई को पवित्र जलमें डुबकी लगवाते है| मंदिर में सकिर्तन का आयोजन होता है फिर गौर निताई को सुन्दर पालकी में विराजमान करते है| हरिनाम संकीर्तन की मस्ती में झूमते हुए धूम धाम से यात्रा निकली जाती है जिसे पालकी महोत्सव भी कहते है | सभी भक्तो के लिए महाप्रसाद का आयोजन होता है| दही चिड़ा का प्रसाद भी विशेष रूप से भक्तो को दिया जाता है | श्री राधे! निताई गौर हरि बोल!!
  • virasat-admin

    virasat-admin

    जून 29, 2018

    भक्तो का हर क्षण उत्सव होता है क्यूंकि वे हर क्षण भगवान से जुड़े होते है |..Nyc
    श्री राधे ….

  • sapna haridasi

    sapna haridasi

    जून 29, 2018

    shree radhe di😊

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