पुरुषोतम मास माहात्म्य/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 25

पुरुषोतम मास माहात्म्य/अधिक मास माहात्म्य अध्याय– 25

Adhik Mas chapter-25

दृढ़धन्वा बोला:-

हे ब्रह्मन्‌! हे मुने! अब आप पुरुषोत्तम मास के व्रत करने वाले मनुष्यों के लिए कृपाकर उद्यापन विधि को अच्छी तरह से कहिए ॥ १ ॥

बाल्मीकि मुनि बोले – पुरुषोत्तम मास व्रत के सम्पूर्ण फल की प्राप्ति के लिए श्रीपुरुषोत्तम मास के उद्यापन विधि को थोड़े में अच्छी तरह से कहूँगा ॥ २ ॥

पुरुषोत्तम मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी, नवमी अथवा अष्टमी को उद्यापन करना कहा है ॥ ३ ॥

इस पवित्र पुरुषोत्तम मास में प्रातःकाल उठकर यथालब्ध पूजन के सामान से पूर्वाह्न की क्रिया को कर ॥ ४ ॥

एकाग्र मन होकर सदाचारी, विष्णुभक्ति में तत्पर, स्त्री सहित ऐसे तीस ब्राह्मणों को निमन्त्रित करे ॥ ५ ॥

हे भूपते! अथवा यथाशक्ति अपने धन के अनुसार सात अथवा पाँच ब्राह्मणों को निमन्त्रित करे, बाद मध्याह्न के समय सोलह सेर ॥ ६ ॥

अथवा उसका आधा अथवा उसका आधा यथाशक्ति पंचधान्य से उत्तम सर्वतोभद्र बनावे ॥ ७ ॥

बाद सर्वतोभद्र मण्डल के ऊपर सुवर्ण, चाँदी, ताँबा अथवा मिट्टी के छिद्र रहित शुद्ध चार कलश स्थापन करना चाहिये ॥ ८ ॥

अथवा उसका आधा अथवा उसका आधा यथाशक्ति पंचधान्य से उत्तम सर्वतोभद्र बनावे ॥ ७ ॥

बाद सर्वतोभद्र मण्डल के ऊपर सुवर्ण, चाँदी, ताँबा अथवा मिट्टी के छिद्र रहित शुद्ध चार कलश स्थापन करना चाहिये ॥ ८ ॥

चार व्यूह के प्रीत्यर्थ चारों दिशाओं में बेल से युक्त, उत्तम वस्त्र से वेष्टित, पान से युक्त उन कलशों को करना ॥ ९ ॥

उन चारों कलशों पर क्रम से वासुदेव, हलधर, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध देव को स्थापित करे ॥ १० ॥

पुरुषोत्तम मास व्रत के आरम्भ में स्थापित किये हुए राधिका सहित देवदेवेश पुरुषोत्तम भगवान्‌ को कलशयुक्त ॥ ११ ॥

वहाँ से लाकर मण्डल के ऊपर मध्यभाग में स्थापित करे। वेद-वेदांग के जानने वाले वैष्णव को आचार्य बनाकर ॥ १२ ॥

जप के लिए चार ब्राह्मणों का वरण करे। उनको अँगूठी के सहित दो-दो वस्त्र देना चाहिये ॥ १३ ॥

प्रसन्न मन से वस्त्र-आभूषण आदि से आचार्य को विभूषित करके फिर शरीरशुद्धि के लिय प्रायश्चित्त गोदान करे ॥ १४ ॥

तदनन्तर स्त्री के साथ पूर्वोक्त विधि से पूजा करनी चाहिए। और वरण किए हुए चार ब्राह्मणों से चार व्यूह का जप कराना चाहिए ॥ १५ ॥

और चार दिशाओं में चार दीपक ऊपर के भाग में स्थापित करना चाहिये। फिर नारियल आदि फलों से क्रम के अनुसार अर्ध्यदान करना चाहिए ॥ १६ ॥

घुटनों के बल से पृथिवी में स्थित होकर पञ्च रत्नत और यथालब्ध अच्छे फलों को दोनों हाथ में लेकर ॥ १७ ॥

श्रद्धा भक्ति से युक्त स्त्री के साथ हर्ष से युक्त हो प्रसन्न मन से श्रीहरि भगवान्‌ का स्मरण करता हुआ अर्ध्यदान करे ॥ १८ ॥

अर्ध्यदान का मन्त्र – हे देवदेव! हे पुरुषोत्तम! आपको नमस्कार है। हे हरे! राधिका के साथ आप मुझसे दिये गये अर्ध्य को ग्रहण करें ॥ १९ ॥

नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण, दो भुजाधारी, मुरली हाथ में धारण किये, पीताम्बरधारी, देव, राधिका के सहित पुरुषोत्तम भगवान्‌ को नमस्कार है ॥ २० ॥

इस प्रकार भक्ति के साथ राधिका के सहित पुरुषोत्तम भगवान्‌ को नमस्कार करके चतुर्थ्यन्त नाममन्त्रों से तिल की आहुति देवे ॥ २१ ॥

इसके बाद उनके मन्त्रों से तर्पण और मार्जन करे। बाद राधिका के सहित पुरुषोत्तम देव की आरती करे ॥ २२ ॥

अब नीराजन का मन्त्र-कमल के दल के समान कान्ति वाले, राधिका के रमण, कोटि कामदेव के सौन्दर्य को धारण करनेवाले देवेश का प्रेम से नीराजन करता हूँ ॥ २३ ॥

अथ ध्यान मन्त्र-अनन्त रत्नों  से शोभायमान सिंहासन पर स्थित, अन्तर्ज्योति, स्वरूप, वंशी शब्द से अत्यन्त मोहित व्रज की स्त्रियों से घिरे हुए हैं इसलिये वृन्दावन में अत्यन्त शोभायमान, राधिका और कौस्तुभमणि से चमकते हुए हृदय वाले शोभायमान रत्नों  से जटित किरीट और कुण्डल को धारण करनेवाले, आप नवीन पीताम्बर को धारण किए हैं इस प्रकार पुरुषोत्तम भगवान्‌ का ध्यान करें ॥ २४ ॥

फिर राधिका के सहित पुरुषोत्तम भगवान्‌ को पुष्पाञ्जंलि देकर स्त्री के साथ साष्टांग नमस्कार करे ॥ २५ ॥

नवीन मेघ के समान श्यामवर्ण पीतवस्त्रधारी, अच्युत, श्रीवत्स चिन्ह से शोभित उरस्थल वाले राधिका सहित हरि भगवान्‌ को नमस्कार है ॥ २६ ॥

ब्राह्मण को सुवर्ण के साथ पूर्णपात्र देवे। बाद प्रसन्नता के साथ आचार्य को बहुत-सी दक्षिणा देवे ॥ २७ ॥

सपत्नीृक आचार्य को भक्ति से वस्त्र आभूषण से प्रसन्न करे, फिर ऋत्विजों को उत्तम दक्षिणा देवे ॥ २८ ॥

बछड़ा सहित, वस्त्र सहित, दूध देनेवाली, सुशीला गौ को घण्टा आभूषण से भूषित करके उसका दान करना चाहिये ॥ २९ ॥

ताँबे का पीठ, सुवर्ण का श्रृंग, चाँदी के खुर से भूषित कर देवे, बाद घृतपात्र देवे और उसी प्रकार तिलपात्र देवे ॥ ३० ॥

स्त्री-पुरुष को पहिनने के लिए उमा-महेश्व र के प्रीत्यर्थ वस्त्र का दान करे। आठ प्रकार का पद देवे और एक जोड़ा जूता देवे ॥ ३१ ॥

यदि शक्ति हो तो आयु की चंचलता को विचारता हुआ वैष्णव ब्राह्मण को श्रीमद्भागवत का दान करे, देरी नहीं करे ॥ ३२ ॥

श्रीमद्भागवत साक्षात्‌ भगवान्‌ का अद्भुत रूप है। जो वैष्णव पण्डित ब्राह्मण को देवे ॥ ३३ ॥

तो वह कोटि कुल का उद्धार कर अप्सरागणों से सेवित विमान पर सवार हो योगियों को दुर्लभ गोलोक को जाता है ॥ ३४ ॥

हजारों कन्यादान सैकड़ों वाजपेय यज्ञ, धान्य के साथ क्षेत्रों के दान और जो तुलादान आदि ॥ ३५ ॥

आठ महादान हैं और वेददान हैं वे सब श्रीमद्भागवत दान की सोलगवीं कला की बराबरी नहीं कर सकते हैं ॥ ३६ ॥

इसलिये श्रीमद्भागवत को सुवर्ण के सिंहासन पर स्थापित कर वस्त्र-आभूषण से अलंकृत कर विधिपूर्वक वैष्णव ब्राह्मण को देवे ॥ ३७ ॥

काँसे के ३० (तीस) सम्पुट में तीस-तीस मालपूआ रखकर ब्राह्मणों को देवे ॥ ३८ ॥

हे पृथिवीपते! हर एक मालपूआ में जितने छिद्र होते हैं उतने वर्ष पर्यन्त वैकुण्ठ लोक में जाकर वास करता है ॥ ३९ ॥

बाद योगियों को दुर्लभ, निर्गुण गोलोक को जाता है। जिस सनातन ज्योतिर्धाम गोलोक को जाकर नहीं लौटते हैं ॥ ४० ॥

अढ़ाई सेर काँसे का सम्पुट कहा गया। निर्धन पुरुष यथाशक्ति व्रतपूर्ति के लिये सम्पुट दान करे ॥ ४१ ॥

अथवा पुरुषोत्तम भगवान्‌ के प्रीत्यर्थ मालपूआ का कच्चा सामान, फल के साथ सम्पुट में रखकर देवे ॥ ४२ ॥

हे नराधिप! निमन्त्रित सपत्नीेक ब्राह्मणों को पुरुषोत्तम भगवान्‌ के समीप संकल्प करके देवे ॥ ४३ ॥

अब प्रार्थना लिखते हैं :-

हे श्रीकृष्ण! हे जगदाधार! हे जगदानन्ददायक! अर्थात्‌ हे जगत्‌ को आनन्द देने वाले! मेरी समस्त इस लोक तथा परलोक की कामनाओं को शीघ्र पूर्ण करें ॥ ४४ ॥

इस प्रकार गोविन्द भगवान्‌ की प्रार्थना कर प्रसन्नता पूर्वक पुरुषोत्तम भगवान्‌ का स्मरण करता हुआ स्त्रीसहित सदाचारी ब्राह्मणों को भोजन करावे ॥ ४५ ॥

ब्राह्मणरूप हरि और ब्राह्मणीरूप राधिका का स्मरण करता हुआ भक्ति पूर्वक गन्धाक्षत से पूजन कर घृत पायस का भोजन करावे ॥ ४६ ॥

व्रत करने वाला विधिपूर्वक भोजन सामान का संकल्प करे। अंगूर, केला, अनेक प्रकार के आम के फल ॥ ४७ ॥

घी के पके हुए, सुन्दर उड़द के बने बड़े, चीनी घी के बने घेवर, फेनी, खाँड़ के बने मण्डक ॥ ४८ ॥

खरबूजा, ककड़ी का शाक, अदरख, सुन्दर नीबू, आम और अनेक प्रकार के अलग-अलग शाक ॥ ४९ ॥

इस प्रकार षट्‌रसों से युक्त चार प्रकार का भोजन सुगन्धित पदार्थ से वासित गोरस को परोस कर, कोमल वाणी बोलता हुआ ॥ ५० ॥

यह स्वादिष्ट है, इसको आपके लिए तैयार किया है, प्रसन्नता के साथ भोजन कीजिये। हे ब्रह्मन्‌! हे प्रभो! जो इस पकाये हुए पदार्थों में अच्छा मालूम हो उसको माँगिये ॥ ५१ ॥

मैं धन्य हूँ, आज मैं ब्राह्मणों के अनुग्रह का पात्र हुआ, मेरा जन्म सफल हुआ, इस प्रकार कह कर आनन्द पूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराकर ताम्बूल और दक्षिणा देवे ॥ ५२ ॥

इलायची, लौंग, कपूर, नागरपान, कस्तूरी, जावित्री, कत्था और चूना ॥ ५३ ॥

इन सब पदार्थों को मिलाकर भगवान्‌ के लिये प्रिय ताम्बूल को देना चाहिये। इसलिये इन सामानों से युक्त करके ही आदर के साथ ताम्बूल देना चाहिए ॥ ५४ ॥

जो इस प्रकार ताम्बूल को ब्राह्मण श्रेष्ठ के लिये देता है वह इस लोक में ऐश्वार्य सुख भोग कर परलोक में अमृत का भोक्ता होता है ॥ ५५ ॥

स्त्री के साथ ब्राह्मणों को प्रसन्न कर हाथ में मोदक देवे और ब्राह्मणियों को विधिपूर्वक वस्त्र आभूषण से अलंकृत कर वंशी देवे ॥ ५६ ॥

सीमा तक उन ब्राह्मणों को पहुँचाकर विसर्जन करे। मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ॥ यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥ १ ॥ इस मन्त्र से पुरुषोत्तम भगवान्‌ को क्षमापन समर्पण करके ॥ ५७ ॥

यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियादिषु ॥ न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो बन्दे तमच्युतम्‌ ॥ १ ॥ इस मन्त्र से जनार्दन भगवान्‌ को नमस्कार कर जो कुछ कमी रह गई हो वह अच्युत भगवान्‌ की कृपा से पूर्ण फल देनेवाला हो यह कहकर यथासुख विचरे ॥ ५८ ॥

अन्न का यथाभाग विभाग कर भूतों को देकर मिथ्याभाषण से रहित हो, अन्न की निन्दा न करता हुआ कुटुम्बिजनों के साथ भोजन करे ॥ ५९ ॥

अमावस्या के दिन रात्रि में जागरण करे। सुवर्ण की प्रतिमा में राधिका के सहित पुरुषोत्तम भगवान्‌ का पूजन करे ॥ ६० ॥

पूजा के अन्त में सपत्नीमक व्रती प्रसन्नचित्त हो नमस्कार कर राधिका के साथ पुरुषोत्तम देव का विसर्जन करे ॥ ६१ ॥

फिर आचार्यं को मूर्ति के सहित चढ़ा हुआ सामान को देवे। अपनी इच्छानुसार यथायोग्य अन्नुदान को देवे ॥ ६२ ॥

जिस किसी उपाय से इस व्रत को करे और उत्तम भक्ति से द्रव्य के अनुसार दान देवे ॥ ६३ ॥

स्त्री अथवा पुरुष इस व्रत को करने से जन्म-जन्म में दुःख, दारिद्रय और दौर्भाग्य को नहीं प्राप्त होते हैं ॥ ६४ ॥जो लोग इस व्रत को करते हैं वे इस लोक में अनेक प्रकार के मनोरथों को प्रात्प करके सुन्दर विमान पर चढ़कर श्रेष्ठ वैकुण्ठ लोक को जाते हैं ॥ ६५ ॥

श्रीनारायण बोले:-

इस प्रकार जो पुरुष श्रीकृष्ण भगवान्‌ का प्रिय पुरुषोत्तम मासव्रत विधिपूर्वक आदर के साथ करता है वह इस लोक के सुखों को भोगकर और पापराशि से मुक्त होकर अपने पूर्व पुरुषों के साथ गोलोक को जाता है ॥ ६६ ॥

इति श्रीबृहन्नारदीयपुराणे पुरुषोत्तममासमाहात्म्ये दृढधन्वोपाख्याने व्रतोद्यापनविधिकथनं नाम पञ्चविंशोऽध्यायः ॥ २५ ॥

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