कहते है शास्त्रों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि यदि भूलवश भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को चंद्र-दर्शन Chandra Darshan हो जाय तो कलंक लगता है। इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता ।शास्त्रों में एक और कथा कही गयी है जिसको कहने सुनने से इस दोष का निवारण हो जाता है ।
स्यमंतक मणि और श्री कृष्णा की कथा :-
सत्राजित् नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की दिव्य मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। वह मणि बहुत ही दिव्य थी । उस मणि के प्रभाव से उस राज्य में रोग, चोरी, पाप, अग्नि, अकाल, अतिवृष्टि आदि का भय नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेेन के दरबार में गया । वहां पर भगवान श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। उन्होंने सोचा कि यदि यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती तो कितना अच्छा होता। यह बात किसी तरह सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने यह मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी।
एक दिन जब सत्राजित् का भाई प्रसेन जंगल गया तो वहां पर सिंह ने उसे मार डाला। जब प्रसेन वापस नहीं लौटा तो लोगों को यह आशंका हुई कि चूँकि श्रीकृष्ण shri krishn जी उस मणि को चाहते थे शायद इसलिए उन्होंने प्रसेन को मारकर वह मणि ले ली होगी। लेकिन वह मणि सिंह के मुंह में ही रह गई थी । फिर जामवंत ने शेर को मारकर वह मणि ले ली।
उधर जब भगवान श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर मणि चुराने का मिथ्या आरोप लग रहा है। तो वो सोचने लगे ऐसा क्यों हुआ तब उन्हें याद आये की उन्होंने भादो के शुक्ल पक्ष गणेश चतुर्थी का चंद्र दर्शन कर लिया था। इसी लिए झूठा कलंक उनपे लगा। फिर तो वे सच्चाई का पता लगाने जंगल में चले गए। ढूंढ़ते ढूंढ़ते वह जामवंत गुफा तक जा पहुंचे और वहाँ पर अजब देखा तो जामवंत की पुत्री उस मणि से खेल रही थी। जामवंत से मणि लेने के लिए उन्होंने उसके साथ 21 दिनों तक घोर संग्राम किया। अंत में जामवंत समझ गया कि यह कोई साधारण मानव नहीं श्रीकृष्ण तो साक्षात ईश्वर ही है जो त्रेता युग में भगवान श्रीराम के रूप में उनके स्वामी थे।
इस ज्ञान को प्राप्त करने के बाद जामवंत ने तब खुशी-खुशी वह मणि भगवान श्रीकृष्ण को दे दी तथा अपनी पुत्री जाम्बवंती का विवाह भी उनसे करवा दिया। वह मणि लेकर भगवान श्रीकृष्ण ने पुन: सत्राजित् को लौटा दी। सत्राजित् मणि पाकर और सच्चाई जानकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भी खुश होकर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह प्रभु श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
निष्कर्ष :-
ये कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में सुनने को मिलती है। इस कथा को पढ़ने से चंद्र दर्शन दोष दूर हो जाता है।
Neetu Srivastava
सितम्बर 4, 2019
Ye Katha kis din padh kar dosh dur Kiya jata hai please hme btaye
hamari virasat
सितम्बर 4, 2019
अगर आपने गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन कर लिया था तो आप किसी भी समय ये कथा पढ़ सकती है मन में ये भाव होना चाहिए। मुझसे ये भूल हुए है श्री गणेश भगवान आप मेरी इस भूल को झमा करे। और अभी गणेशोत्सव चल रहा है। तो ये आपके लिए और भी शुभ होगा। बाकि हमारे भाव निर्मल होने चाहिए फिर आप जब भी पुकारे उन्हें वो सुन लेते है।
जय श्री गणेश
Neetu Srivastava
Ye Katha kis din padh kar dosh dur Kiya jata hai please hme btaye
hamari virasat
अगर आपने गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन कर लिया था तो आप किसी भी समय ये कथा पढ़ सकती है मन में ये भाव होना चाहिए। मुझसे ये भूल हुए है श्री गणेश भगवान आप मेरी इस भूल को झमा करे। और अभी गणेशोत्सव चल रहा है। तो ये आपके लिए और भी शुभ होगा। बाकि हमारे भाव निर्मल होने चाहिए फिर आप जब भी पुकारे उन्हें वो सुन लेते है।
जय श्री गणेश