
हिंदी में पढ़े विकट श्री गणेश जी के बारे में -Ganesh ji ki katha
भगवान् श्री गणेश का षष्टम अवतार विकट श्री गणेश का है जिसके सम्बन्ध में एक श्लोक मिलता है जो इस प्रकार है –
विकटो नाम विख्यातः कामासुर्विदाहकः |
मयुरवाहनश्चायं सौरब्रह्मधरः स्मृतः ||
(भगवान् श्री गणेश का श्री विकटावतार सौरब्रह्म का धारक है, यह यह कामासुर का वध करने वाला कहा जाता है। इनका वाहन मयूर(मोर) है ।)
कथा:- एक बार भगवान विष्णु जब जलन्धर के वध हेतु वृंदा का तप नष्ट करने पहुंचे तो उसी समय उनके शुक्र से एक अत्यंत तेजस्वी असुर पैदा हुआ । वह कामाग्नि से पैदा हुआ था इसीलिए उसका नाम कामासुर हुआ । वह दैत्यगुरु शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त करके भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए कठोर तपस्या की अन्न, जल त्याग दिया शरीर जीर्ण शीर्ण हो गया । तपस्या के पूर्ण होने पर उसे भगवान् शिव के दिव्य दर्शन प्राप्त हुए तथा शिव जी से ब्रह्माण्ड का राज्य, शिवभक्ति तथा म्रत्युन्जयी होने का वरदान प्राप्त किया ।
जब यह समाचार शुक्राचार्य को मिला तो उसने कामासुर को दैत्यों का अधिपति घोषित कर दिया और महिषासुर की पुत्री से उसका विवाह कर दिया । कामासुर ने एक एक सुन्दर सी नगरी को अपनी राजधानी बनाया । कामासुर ने रावण, शम्बर, महिष, बलि को अपनी सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त किया । कामासुर ने धीरे धीरे पृथ्वी के समस्त राजाओं को जीत लिया । उसके स्वर्ग पर भी आक्रमण कर दिया । कामासुर ने स्वर्ग के समस्त देवताओं को भी जीत लिया । वरदान के बल पर कामासुर ने तीनो लोको पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया । चारो तरफ छल कपट का साम्राज्य स्थापित हो गया । धर्म कर्म सब नष्ट हो गये । सभी देवी, देवता, ऋषि, मुनि दर दर भटकने लगे ।
महर्षि मुद्गल के मार्ग दर्शन में:-
महर्षि मुद्गल के मार्ग दर्शन में सभी विस्थापित देवी, देवता, ऋषि, मुनि सभी श्री गणेश के विकट स्वरुप की भक्ति भावना से उपासना करने लगे । उपासना से प्रसन्न होकर श्री विकट गणेश प्रकट हुए । श्री विकट गणेश ने देवताओं से वरदान मांगने को कहा तब सभी देवी देवताओं ने कामासुर के अत्याचार के अंत की प्रार्थना की । विकट श्री गणेश ने तथास्तु कहा और चले गए ।
उचित समय आने पर विकट श्री गणेश ने सभी देवी देवताओं के साथ मिलकर कामासुर की राजधानी को घेर लिया और कामासुर को युद्ध के लिए ललकारा । दोनों पक्षों में युद्ध शुरू हो गया घमासान युद्ध होने लगा । युद्ध में कामासुर के दोनों पुत्र मारे गए । भगवान् विकट ने कामासुर को चेताया की तूने श्री शिव के वरदान से अधर्म मचाया है मगर अब तेरा अंत निश्चित है अगर अपना जीवन चाहता है तो सभी देवी देवताओं से वैर छोड़ कर मेरी शरण में आजा अन्यथा अपनी म्रत्यु के लिए तैयार होजा ।
कामासुर ने क्रोधित होकर श्री विकट पर अपनी गदा फ़ेंक कर प्रहार किया परन्तु कामासुर का प्रहार विफल हो गया । जब श्री विकट ने क्रोध भरी दृष्टि से कामासुर को तो वो मुर्छित हो गया और पृथ्वी पर गिर गया और उसकी समस्त शक्ति का छय होने लगा । कामासुर डर गया और विकट श्री गणेश के चरणों में अपना सिर रख कर क्षमा याचना करने लगा । युद्ध समाप्त हो गया और कामासुर ने अपने अस्त्र शस्त्र छोड़ दिए श्री विकट की शरण में आ गया श्री विकट ने भी कामासुर को माफ़ कर दिया । सब देवी देवता गण श्री मयुरेश भगवान् विकट की जय जय कार करने लगे । इस प्रकार पुनः धर्म की स्थापना हो गई ।
Next :- विघ्नराज श्री गणेश
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