Chandra Grahan 7 September 2025 Time | Bhadrapad Purnima 2025 | Lunar Eclipse | चंद्रग्रहण कब लगेगा
चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan kab lagega) एक ऐसा खगोलीय और आध्यात्मिक घटना है, जिसने प्राचीन काल से ही मनुष्य को आकर्षित किया है। जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है, तो चंद्र ग्रहण होता है। यह न केवल खगोल विज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि धर्म, ज्योतिष और आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत विशेष माना गया है।
चंद्र ग्रहण कैसे होता है? (Scientific Explanation)
- सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में आ जाते हैं।
- पृथ्वी की छाया (Earth’s Shadow) जब चंद्रमा को ढक लेती है तो चंद्र ग्रहण दिखता है।
- यह केवल पूर्णिमा को ही हो सकता है।
- इसके तीन प्रकार होते हैं:
- पूर्ण चंद्र ग्रहण – जब पूरा चंद्रमा छाया में आ जाता है।
- आंशिक चंद्र ग्रहण – जब चंद्रमा का कुछ हिस्सा छाया में होता है।
- उपच्छाया चंद्र ग्रहण – जब चंद्रमा केवल पृथ्वी की हल्की छाया से गुज़रता है।
चंद्र ग्रहण का आध्यात्मिक महत्व
- शास्त्रों में चंद्र ग्रहण को साधना, जप, ध्यान और भक्ति के लिए सर्वोत्तम समय बताया गया है।
- कहा जाता है कि इस समय किया गया जप और दान, सामान्य दिनों से हजार गुना अधिक फलदायी होता है।
- चंद्रमा मन और भावनाओं का प्रतीक है, और ग्रहण के समय उसका असामान्य प्रभाव हमें भीतर की ओर ले जाता है।
- इसी कारण हरि नाम जप, राम नाम या ओम नमः शिवाय का जप विशेष फलदायी होता है।
धार्मिक दृष्टिकोण
- चंद्र ग्रहण को “सूतक काल” माना जाता है।
- इस दौरान खाना-पीना, सोना, तेल लगाना, दर्पण देखना, नाप-तौल करना, सिलाई-कढ़ाई वर्जित माने जाते हैं।
- गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतनी चाहिए।
- ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान और गंगाजल से शुद्धिकरण करना आवश्यक माना गया है।
- मंदिरों में इस समय आरती या पूजा नहीं की जाती, परंतु मंत्र जप सबसे श्रेष्ठ है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण
- ज्योतिष में चंद्रमा मन, विचार, भावनाएँ और माता का प्रतीक है।
- चंद्र ग्रहण के समय मानसिक अशांति, चिड़चिड़ापन और अस्थिरता बढ़ सकती है।
- जिनकी जन्मकुंडली में चंद्रमा कमजोर है, उन्हें इसका असर अधिक महसूस होता है।
- ध्यान और जप के द्वारा इसका निवारण किया जा सकता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
- विज्ञान इसे केवल खगोलीय घटना मानता है।
- ग्रहण से खाने-पीने पर सीधा असर नहीं होता, लेकिन प्राचीनकाल में प्रकाश की अनुपस्थिति और बैक्टीरिया के बढ़ने की वजह से भोजन वर्जित किया गया।
- गर्भवती महिलाओं के लिए भी वैज्ञानिक दृष्टि से सीधा नुकसान नहीं, परंतु मानसिक तनाव और नकारात्मक भावनाएँ असर डाल सकती हैं।
ग्रहण में क्या करें?
✅ मंत्र-जप, ध्यान, राम नाम या हरि नाम जप
✅ दान, विशेषकर अन्न, वस्त्र और गौसेवा
✅ गीता, रामचरितमानस, या भागवत पाठ
✅ ग्रहण समाप्ति पर स्नान और शुद्धिकरण
ग्रहण में क्या न करें?
❌ खाना-पीना
❌ नाप-तौल, सिलाई-कढ़ाई, रूप सज्जा
❌ अनावश्यक सोना या मनोरंजन
❌ गर्भवती महिलाओं को धारदार वस्तुओं से बचना
चंद्र ग्रहण केवल एक खगोलीय घटना नहीं है, बल्कि यह हमें आध्यात्मिक जागृति, आत्म-चिंतन और प्रकृति की शक्ति का एहसास कराता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से यह एक सुंदर प्राकृतिक घटना है, परंतु धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से यह आत्मशुद्धि और साधना का दुर्लभ अवसर है।
👉 इसलिए चंद्र ग्रहण को डर की नज़र से नहीं, बल्कि आत्मा की उन्नति और प्रकृति के संदेश की तरह देखना चाहिए।
Chandra Grahan kab lagega:-
खण्डग्रास चंद्र ग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा रविवार 7/9/2025
ग्रहण प्रारंम्भ – रात्रि 9.58 बजे से ग्रहण समाप्त – रात्रि 1.26 पर
ग्रहण सूतक – दोपहर 12.56 से
नोट :- मन्दिर के कपाट 7.09.25 को दोपहर 12.00 बजे बन्द होंगे।
घर के मंदिर के कपाट भी आप 12.00 बजे बंद कर दे.
Grahan In details:-
उपच्छाया से पहला स्पर्श – 08:59 पी एम
प्रच्छाया से पहला स्पर्श – 09:58 पी एम
खग्रास प्रारम्भ – 11:01 पी एम
परमग्रास चन्द्र ग्रहण – 11:42 पी एम
खग्रास समाप्त – 12:22 ए एम, सितम्बर 08
प्रच्छाया से अन्तिम स्पर्श – 01:26 ए एम, सितम्बर 08
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श – 02:24 ए एम, सितम्बर 08
खग्रास की अवधि – 01 घण्टा 21 मिनट्स 27 सेकण्ड्स
खण्डग्रास की अवधि – 03 घण्टे 28 मिनट्स 02 सेकण्ड्स
उपच्छाया की अवधि – 05 घण्टे 24 मिनट्स 37 सेकण्ड्स
चन्द्र ग्रहण का परिमाण – 1.36
उपच्छाया चन्द्र ग्रहण का परिमाण – 2.34
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक प्रारम्भ – 06:35 पी एम
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिये सूतक समाप्त – 01:26 ए एम, सितम्बर 08
पूर्णिमा श्राद्ध(Purnima shradh muharat):-
और विशेष बात इस दिन से पूर्णिमा श्राद्ध शुरू हो जाएगा तो जिसका पूर्णिमा श्रद्धा हो वह 12:00 से पहले संकल्प पूजा कर ले दान पुण्य जो भी करना है वह 12:00 से पहले कर ले क्योंकि 12:00 के बाद से सूतक लग जायेगा। इसीलिए जिनके भी पितृ का श्रद्धा पूर्णिमा को होता है वो कर ले।
पूर्णिमा श्राद्ध रविवार, सितम्बर 7, 2025 को
कुतुप मुहूर्त – 11:53 ए एम से 12:43 पी एम
अवधि – 00 घण्टे 50 मिनट्स
रौहिण मुहूर्त – 12:43 पी एम से 01:33 पी एम
अवधि – 00 घण्टे 50 मिनट्स
अपराह्न काल – 01:33 पी एम से 04:04 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 31 मिनट्स
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 07, 2025 को 01:41 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – सितम्बर 07, 2025 को 11:38 पी एम बजे
2025 श्राद्धि पूर्णिमा
पूर्णिमा श्राद्ध को श्राद्धि पूर्णिमा तथा प्रोष्ठपदी पूर्णिमा श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
पूर्णिमा श्राद्ध भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। किन्तु यह ध्यान देना आवश्यक है कि पूर्णिमा तिथि पर मृत्यु प्राप्त करने वालों के लिये महालय श्राद्ध भी अमावस्या श्राद्ध तिथि पर किया जाता है। हालाँकि, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध पितृ पक्ष से एक दिन पहले पड़ता है, किन्तु यह पितृ पक्ष का भाग नहीं है। सामान्यतः पितृ पक्ष, भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध के अगले दिन से आरम्भ होता है।
भाद्रपद पूर्णिमा श्राद्ध, जैसे कि पितृ पक्ष श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध होते हैं। इन श्राद्धों को सम्पन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण आदि मुहूर्त शुभ मुहूर्त माने गये हैं। अपराह्न काल समाप्त होने तक श्राद्ध सम्बन्धी अनुष्ठान सम्पन्न कर लेने चाहिये। श्राद्ध के अन्त में तर्पण किया जाता है।
राहु–केतु और चंद्रग्रहण की पौराणिक कथा (chandra grahan spiritual story):-
समुद्र मंथन
- जब देवता और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से अमृत कलश निकला।
- अमृत पीने से अमरत्व मिलना था, इसलिए सभी अमृत पाने की लालसा में थे।
असुर का रूप बदलना
- देवताओं को अमृत मिले, इसके लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया और अपने रूप की माया से देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया।
- परंतु एक चालाक असुर जिसका नाम स्वर्भानु था, उसने देवता का वेश बनाकर अमृत पान कर लिया।
भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र
- सूर्य और चंद्रमा ने यह छल देख लिया और भगवान विष्णु को संकेत दिया।
- भगवान विष्णु ने तुरंत अपना सुदर्शन चक्र चलाकर स्वर्भानु का सिर काट दिया।
- लेकिन तब तक अमृत उसके गले तक पहुँच चुका था, इसलिए वह मरा नहीं।
राहु और केतु का जन्म
- स्वर्भानु का सिर अलग होकर राहु कहलाया।
- उसका धड़ केतु कहलाया।
- दोनों अदृश्य ग्रह बनकर आकाश में स्थापित हो गए।
राहु-केतु और ग्रहण
- सूर्य और चंद्रमा ने जिस समय उसकी शिकायत की थी, उस घटना को राहु कभी नहीं भूला।
- इसी कारण राहु-केतु समय-समय पर सूर्य और चंद्रमा को पकड़ लेते हैं।
- जब राहु चंद्रमा को ग्रसता है तो चंद्रग्रहण होता है।
- और जब राहु सूर्य को ग्रसता है तो सूर्यग्रहण होता है।
आध्यात्मिक संदेश
- राहु और केतु हमें याद दिलाते हैं कि असत्य और छल कभी पूर्ण विजय नहीं पा सकते।
- ग्रहण का समय हमें सतर्कता, ध्यान और ईश्वर की शरण की ओर प्रेरित करता है।
- इसलिए शास्त्रों ने कहा है कि ग्रहण के समय हरि नाम जप, दान और ध्यान से पापों का नाश होता है।
समुद्र मंथन हुआ जगत में,
देव–असुर सब साथ खड़े थे।
निकला अमृत कलश अमोघ,
सबके मन में लोभ बड़े थे॥
मोहिनी रूप धरि विष्णु आये,
देवताओं को अमृत पिलाया।
असुर बना देवता का रूप,
छल से अमृत मुख में पाया॥
सूर्य–चंद्र ने भेद बताया,
स्वर्भानु का छल सामने आया।
विष्णु ने चक्र चलाया शीघ्र,
क्षण में सिर उसका अलग कराया॥
सिर से हुआ राहु प्रकट,
धड़ से केतु अमर कहलाए।
अमृत का स्पर्श किया था जिसने,
अमर होकर नभ में समाए॥
सूर्य–चंद्र से बैर पुराना,
समय–समय पर छाया डाले।
जब राहु चंद्र को ग्रस लेता,
तब चंद्रग्रहण जग पर छा ले॥
संदेश:-
जो छल करेगा, सदा वो हारेगा,
सत्य की ज्योति जग में पथ दिखाएगी।
ग्रहण का समय है साधना का,
हरि नाम ही आत्मा को बचाएगी॥
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