हमारे भारत देश में संतों का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है संतों का जीवन बहुत ही सीधा-सादा होता है एक संत ना जाने हमें जिंदगी की कितनी सारी सीख दे जाते हैं जब हम टूट कर बिखर जाते हैं तो संतों की वाणी हमें आकर संभाल लेती है और हमें ईश्वर कृपा का अनुभव करवाती है। जीवन का कोई अगर हमें मोल समझा सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ एक सच्चे संत होते हैं जो हमें असल मायने में जीने का जीवन का महत्व समझाते हैं हजारों करोड़ों लोग उन्हें सुनते हैं लेकिन उनकी बातें हर एक के लिए अपना अलग-अलग असर छोड़ जाती है।
अनमोल वचन
भगवान को पाने के दो माध्यम है गाना और रोना।।।। जो उनके लिए गायेगा और उनके लिए प्रेम अश्रु बहायेगा। भगवान उसे ही मिलेंगे।प्रभु की याद में गिरे अश्रु अनमोल मोती बन जाते है ||
आइए जानते हैं ऐसे एक महान बहुत ही पावन और पवित्र संत के बारे में जिनका नाम श्रद्धेय आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी(shri Mridul krishna Goswami) जी है इनका जीवन परिचय भी बहुत ही अद्भुत है इन्होंने पूरा जीवन श्रीमद्भागवत और श्री कृष्ण जी की महिमा को गाने में समर्पित कर दिया आप जब भी इनका दर्शन करेंगे तो इनके मुख पर हमेशा मुस्कुराहट रहती है लाख परेशानियां हैं लेकिन उनका यह मानना है कि उनकी बिहारी जी हमेशा उनके साथ है जब वह साथ है तो वह क्यों चिंता करें किसी बात की एक अद्भुत छवि एक अद्भुत जीवन एक अद्भुत संत के बारे में जानते हैं उनका जीवन परिचय उनका जीवन काल उनकी उपलब्धियां भी उनकी तरह बहुत ही अद्भुत है आइए जानते हैं उनके बारे में
जन्म: गुरु पूर्णिमा ,वृंदावन, उत्तर प्रदेश, भारत
श्री स्वामी हरिदास जी के सम्प्रदाय की 6th Generation में श्रद्धेय आचार्य श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामीजी का जन्म वृंदावन में हुआ जो शास्त्रीय भारतीय संगीत के संस्थापक और पुनर्योजक भी थे। स्वामी हरिदास जी प्रसिद्ध संगीतकारों के गुरु भी थे, जैसे बैजू बावरा और तानसेन।
श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामीजी जी के पिता आचार्य गोस्वामी श्री मूल बिहारी गोस्वामीजी और माता श्रीमती शांति गोस्वामी जी को श्री मृदुल कृष्ण महाराज जी देवी सरस्वती के आशीर्वाद के रूप में मिले । इनका जन्म वृंदावन उत्तर प्रदेश में हुआ यह वह पावन भूमि है जहां कृष्ण भगवान का जन्म हुआ और उनका बचपन बीता। उन्होंने अपने पिता से भागवत, संस्कृत मूलपाठ और संस्कृत भाषा की अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वो परिवार जिनको श्री बांके बिहारी जी आशीवार्द मिला हुआ है उनकी सभी पीढ़िया संगीत में बहुत ही कुशल होंगी। इनका जन्म एक बहुत ही पवित्र परिवार में हुआ। 15 वीं शताब्दी में, वृंदावन की इस पवित्र भूमि में, एक दिव्य संत स्वामी श्री हरिदास जी महाराज ने अवतार लिया था। स्वामी जी महाराज के इस परिवार में, असंख्य दिव्य आत्माएं पैदा हुई हैं जो संस्कृत की भाषा और श्रीमद्भगवत पुराण की भाषा में विशेष ज्ञान रखते हैं।
इनका जीवन एक खुली किताब के जैसे है सम्पूर्ण जीवन कृष्णा नाम और श्रीमद्भगवत जी का प्रसार को समर्पित है। ये विवाहहित है इनकी धर्मपत्नी (जिनको सभी गुरुमाँ कहते है )उनका नाम वंदना गोस्वामी जी है। इनके एक पुत्र(श्रद्धेय आचार्य श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी) और पुत्रिया है।
श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी ने अपने युवावस्था बिहार जी की सेवा में और अपने पिता के साथ लगातार श्रीमद्भागवत में बिताई। श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी संस्कृत में उच्च शिक्षा प्राप्त की हुए है। श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी जी ने हरिद्वार में 16 साल की उम्र में अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की, जहां उन्हें लाखों लोगो के जीवन को बदल दिया जंहा उन्होंने कहा माया का पर्दा ही है जो हमे ईश्वर से बहुत दूर रखता है। १६ वर्ष की आयु में जो आध्यात्मिक यात्रा शुरू की फिर मुड़कर पीछे कभी नहीं देखा निरंतर साप्ताहिक श्रीमद्भागवत की इस अद्भुत यात्रा पे निकल पड़े। गुरुदेव जी का आशीर्वाद उनके साथ और बिहारी जी की कृपा हमेशा उनके साथ थी। और आज तक विरासत में मिले इस आशीर्वाद को वो बड़े ही श्रद्धा भाव से करोड़ो लोगो तक पंहुचा रहे है।
श्रीमद्भगवत जी के 8000 श्लोक में महारत हासिल किये हुए है वैसे भी इनके ज्ञान के बारे आंकलन करना ठीक नहीं है क्यूंकि जो भी इनके मुख से श्रीमद्भगवत जी को सुनता है वो इनकी महिमा गाने से पीछे नहीं हटता सभी का ये कहना होता है। यहाँ एक अद्भुत संगम होता है कथा और भजन का जो उन्हें साक्षात् बिहारी जी की कृपा की अनुभूति करवाता है।
भक्तो का अनुभव तो बारे ही अद्भुत है। लाखो ने इन्हे अपना गुरु बनाया हुआ है जिनसे वो सच के पथ पे अग्रसर होने का मार्गदर्शन पाते है। हर कोई ये कहता है जब उनके मुख से श्रीमद्भगवत जी को वो आंखें बंद करके सुनते है तो मानो ऐसा लगता है की साक्षात् श्री शुकदेव जी महाराज अपने मुख से सुना रहे हो। वैसे भी वो ये कहते है श्रीमद्भगवत जी के एक कल्पबृक्ष के जैसे है जहा जब कोई सच्चा संकलप को लेकर बैठा है तो वो जरूर पूरा होता है।
कभी खत्म ना होने वाले सफर पे ये दिल निकल चला ,
दुनिया ठुकराए उससे पहले ये तेरी चरणों की ओर चला।
जब श्री मृदुल कृष्ण गोस्वामी श्रीमद्भागवत को अपने मधुर भजनो से मिलकर पढ़ते हैं, तो वह आपको शांति और प्रेम(भक्ति ) की दुनिया में ले जाता है, जहां आप जिस भी दुनिया में, आपको ऐसा लगता है जैसे आप वृंदावन में बैठे हैं (भगवान कृष्ण के जन्म स्थान)
जो कलयुग में इस भागवत नाव में बैठ जायेगा वो बहुत ही आसानी से भव सागर से पर हो जायेगा।
उनके मुख से गाये और स्वरचित इतने सारे भाव है जिनको पूरा बता पाना मुमकिन नहीं फिर भी उनके कई लोकप्रिय भजनो में से कुछ भजन इस प्रकार से है।
जब जब हम इस धरती पे आने का कारन भूलेंगे
तब तब हम अपनी मंज़िल से भटक जायेंगे।
हमारी एक छोटी से कोशिश है उन सभी संतो से मिलवाना की जो आज भी अपनी देश की विरासतों को संस्कृतियों को संजोये बैठे है और हम सभी का सच्चा मार्ग दर्शन कर रहे है।
यु तो संत महापुरुष के बारे में ये कुछ शब्द क्या कह सकते है उनका तो प्रत्येक कर्म बस भगवान को रिझाने के लिए होता है। उनका जीवन का प्रत्येक पल सिर्फ भगवान के लिए और जीवो पे दया के लिए होता है।