देवकीनंदन ठाकुर जी (devkinandan thakur ji) एक संत, समाज सेवक भी है .ने अपनी छोटी छोटी खुशियों का त्याग बचपन में ही कर दिया। और अध्यात्म के सफर पे निकल गए उस खोज पे किस तरह से मानव जाति को सही दिशा मिल सके। 13 साल की उम्र में उन्होंने श्रीमद्भागवतपुराण कंठस्थ कर लिया, उन्होंने निम्बार्क सम्प्रदाय के अनुयायी के रूप में गुरु-शिष्य की परंपरा के तौर पर दीक्षा ली।