शुक्रताल का प्राचीन अक्षवत वृक्ष

शुक्रताल का प्राचीन अक्षवत वृक्ष

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पांच हज़ार से अधिक वर्ष पूर्व का महाभारत कालीन वट वृक्ष

अक्षवत वृक्ष(Akshavat Vriksh  – SHUKARTAAL) मोरना (मुजफ्फरनगर) में आज भी अपनी विशाल जटाओं को फैलाये खड़ा है. अद्भुत रूप से फैली यह जटाएं श्रद्धालु लोग पूजते हैं और स्वयं के मोक्ष की अपेक्षा में समय-समय पर आयोजित होने वाली भागवत कथाओं के आयोजन में सम्मिलित होते हैं. पूरा परिसर एक तीर्थ के रूप में जाना जाता है जहाँ अन्य प्राचीन मंदिर, धर्मशालायें, समागम स्थल स्थापित हैं. उस समय नदी का प्रवाह निकट ही था परन्तु वर्तमान में इसने अपना रास्ता बदल लिया है और नदी वहां से काफी दूर हो गई है. मंदिर में जाने के लिए काफी सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाना होता है.

श्री शुकदेव मुनि जी ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई:-

शुक्रताल उत्तर भारत की ऐतिहासिक पौराणिक तीर्थ नगरी रही है। यहां पर करीब छह हजार साल पहले महाभारत काल में हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज पांडव वंशज राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने के लिए गंगा किनारे प्राचीन अक्षवत वृक्ष(Akshavat Vriksh ) के नीचे बैठकर 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ श्री शुकदेव मुनि जी ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई थी ।शुक्रताल उत्तर भारत की ऐतिहासिक पौराणिक तीर्थ नगरी रही है। यहां पर करीब छह हजार साल पहले महाभारत काल में हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज पांडव वंशज राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने के लिए गंगा किनारे प्राचीन अक्षय वट के नीचे बैठकर 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ श्री शुकदेव मुनि जी ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई थी । Akshay Vat

पौराणिक वट वृक्ष के बारे में मान्यता :-

यह वट वृक्ष आज भी भक्ति सागर से ओतप्रोत हरा-भरा अपनी विशाल बाहें फैलाए अडिग खड़ा अपनी मनोहारी छटा बिखेर रहा है। पौराणिक वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि पतझड़ के दौरान इसका एक भी पत्ता सूखकर जमीन पर नहीं गिरता अर्थात इसके पत्ते कभी सूखते नहीं है और इसका एक विशेष गुण यह भी है कि इस विशाल वृक्ष में कभी जटाएं उत्पन्न नहीं हुई।

पांच हज़ार वर्ष आयु वाला:-

की आयु वाला ये वट वृक्ष आज भी युवा है। इस वृक्ष से 200 मीटर दूरी पर एक कुंआ है, जिसे पांडवकालीन कहा जाता है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि वट वृक्ष जैसी धरोहर के प्रचार-प्रसार को शासन स्तर पर गंभीरता का अभाव है। हालांकि आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज बताते हैं कि देश के कोने-कोने से अनेक श्रद्धालु तीर्थ नगरी में आते हैं और एक सप्ताह तक रहकर श्रीमद भागवत कथा का आयोजन कराते हैं। इसके अलावा अनेक श्रद्धालु सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन भी प्राचीन वट वृक्ष के नीचे बैठकर कराते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से प्राचीन अक्षय वट वृक्ष पर धागा बांधकर मनौती मांगते हैं। उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

अगर हम अपने सांस्कृतिक विरासतों से दूर होते जायेंगे :-

आज हमारे देश की विरासत, धरोहर जो अपने अंदर अननत शक्तियों को लेके विराजमान है उनका कोई प्रचार प्रसार नहीं होता। जिसकी वजय से आने वाली पीढ़िया इन सबके बारे में नहीं जान पाती। अब आप सोच रहे होंगे जान कर क्या होगा। अगर हम अपने सांस्कृतिक विरासतों से दूर होते जायेंगे तो आने वाली युवा  पीढ़ी तक हम इस खूबसूरती को नहीं पंहुचा पाएंगे। जिससे हमारे देश की नीव कमज़ोर हो जाएगी। भारत देश अपने आध्यात्मिक शक्ति ,मंदिरो ,संतो, किसानो ,और सांस्कृतिक विरासतों की वजय से ही पुरे विश्व में प्रसिद्द है। इसलिए अपने देश की विरासतों से प्यार करे उसकी खूबसूरती आध्यात्मिकता को सब तक पहुचाये। और खुद जाकर देखे जगहों की खूबसूरती को जो अपने अंदर कितने रहस्य को छिपा कर बैठे है।

आज दिलो को जरुरत है सुकून की और वो सिर्फ हमें सचाई से सच से जुड़ कर मिलेगी। जो हमारी देश की विरासतों में है। जो कई युगो से है।

कैसे शुक्रताल एक तीर्थ स्थल के रूप में जाने जाना लगा

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