अंबरनाथ शिव मंदिर (ancient ambernath shiv mandir Temple), महाराष्ट्र का अंबरनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर में मिले एक शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण 1060 ईस्वी में शिलाहट के राजा मांबणि ने करवाया था। वहां के स्थानीय निवासी इस मंदिर को पांडवकालीन मानते हैं। यह मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला की ज्वलंत मिसाल है। ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में बने अंबरनाथ शिव मंदिर (shiv mandir ambarnath) के बारे में कहा जाता है कि इसके जैसा मंदिर पूरी दुनिया में और कहीं नहीं।
इस मंदिर में गभरा नामक मुख्य कमरे में नीचे जाने के लिए 20 सीढ़ियाँ हैं; और कमरे के केंद्र में एक शिवलिंग है। महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए अंबरनाथ में एक बड़ा मेला लगता है। इस मंदिर के बाहर दो नंदी बने हैं। मंदिर की मुख्य मूर्ति त्रैमस्तिकी है, इसके घुटने पर एक नारी है, जो शिव—पार्वती के स्वरूप को दर्शाती है। वलधान नदी के तट पर बना मंदिर इमली और आम के पेड़ों से घिरा हुआ है। मंदिर की वास्तुकला उच्चकोटि की है। यहां वर्ष 1060 ई. का एक प्राचीन शिलालेख भी पाया गया है। इस नगर में आप दियासलाई के कारखानों का भ्रमण भी कर सकते हैं।
महा शिवरात्रि के अवसर पर एक भव्य मेला आयोजित किया जाता है जो हजारों भक्तों द्वारा दौरा किया जाता है। महा शिवरात्रि मेला 3–4 दिनों तक चलता है। महा शिवरात्रि के दिन, तीर्थयात्रियों के भारी प्रवाह के कारण अंबरनाथ का पूर्वी भाग वाहनों के लिए अवरुद्ध हो जाता है। मंदिर श्रावण के महीने में भीड़भाड़ वाला हो जाता है।
मंदिर दिनभर दर्शनों के लिए खुला रहता है। माघ के महीने में शिवरात्रि के अवसर पर यहां विशाल मेले का आयोजन होता है।
इस मंदिर को पुनर्निर्माण किया गया है लेकिन पौराणिक कथा यह है कि यह एक एकल पत्थर से पांडवों द्वारा बनाया गया था।
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Mon, Wed-Sat:- 8AM–6PM
Tue 8AM–7:30PM
Sun 8AM–9PM
‘मानवीय हाथों से बना ऐसा चमत्कार मुंबई के मुहाने पर मौजूद है और मुंबईवाले ही उसे नहीं जानते- यह अपने आप में एक चमत्कार है’, जाने-माने पत्रकार प्रकाश जोशी अपना विस्मय रोक नहीं पाते, और यह सच है। काम पर आते-जाते विश्व विरासत(virasat) छत्रपति शिवाजी टर्मिनस को आप रोज ही देखा करते हैं। गाहे-बगाहे गेट-वे ऑफ इंडिया, एलिफेंटा केव्ज, मरीन ड्रॉइव और चौपाटी भी हो आते हैं। सिद्धिविनायक और बाबुलनाथ को सिर नवाना भी नहीं भूलते। पर, याद कीजिए, पहाड़ की तलहटी में बसे, मलंगगढ़ की विहंगम छटा दिखाने वाले अंबरनाथ के शिव मंदिर(shiv mandir at ambernath) के दर्शन करने पिछली बार आप कब गए थे- जो आपके प्रिय हिल स्टेशन खंडाला से आधे से कम दूरी पर है और अछूते सौंदर्य के लिहाज से उससे उन्नीस नहीं। बताइए, क्या आपके बच्चों ने इस मंदिर का नाम भी सुन रखा है…?
यूनेस्को द्वारा घोषित यह सांस्कृतिक विरासत इस वक्त अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। यह उस जगह का हाल है, जिसे यूनेस्को ने अपनी सांस्कृतिक विरासत घोषित कर रखा है। विश्व भर में ऐसे कुल 218 ठिकाने हैं। इनमें भारत के पास महज 25 हैं और महाराष्ट्र में तो केवल चार। काश, पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बाहर लगे सूचना पट पर ‘अंबरेश्वर’ (या ‘अमरनाथ’) के संरक्षित स्मारक होने की घोषणा करने के साथ इसकी देखभाल के लिए भी कुछ किया होता! सुशोभीकरण और आकर्षण वृद्धि तो दूर की बात, दरअसल, मंदिर का अस्तित्व ही इस समय खतरे में है। संरक्षण-दरअसल, अंबरनाथ के सन्मुख सबसे बड़ा मुद्दा इस समय यही है। भीतर लगे सुंदर पच्चीकारी वाले लौह स्तंभ और खूबसूरत पत्थर अपने जीर्ण होने की चुगली करते हैं। छतों और दीवारों को गिरने से रोकने के लिए जगह-जगह टेक लगाए गए हैं। खुले स्थानों से पानी लगातार रिसता रहता है और जगह-जगह सीलन और फिसलन होने के कारण गिरने के भय से एक-एक कदम संभालकर रखना पड़ता है। असल में अंबरनाथ किसी भी प्रयास के बजाय मंदिर निर्माण की कला की वजह से ही काल के थपेड़े और हर अन्याय व झंझावात सहते लगभग एक हजार वर्ष बाद भी टिका हुआ है। चाहें, तो इसे भोलेनाथ की कृपा भी कह लीजिए।
खंडहर बना अंबरेश्वर आज अपने स्वर्णिम अतीत की छाया भर रह गया है। इसकी हालत दारुण है- बहुत दारुण। यहां तक कि डर लगने लगा है कि क्या हमारी भावी पीढ़ियां इतिहास, कला और संस्कृति के इस अद्भुत नमूने को देख पाएंगी? अगर हां, तो यह कैसे होगा? इसे सहेज कर रखने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है?
अंबरनाथ की जड़ें महाभारत काल तक जाती हैं। लोकोक्ति है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के सबसे दूभर कुछ वर्ष अंबरनाथ में बिताए थे और यह पुरातन मंदिर उन्होंने एक ही रात में विशाल पत्थरों से बनवा डाला था। कौरवों द्वारा लगातार पीछा किए जाने के भय से यह स्थान छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। मंदिर फिर पूरा नहीं हो सका। आसमान के साथ स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन कराने वाला गर्भगृह के- जो मंडप से 20 सीढ़ियां नीचे है, ठीक ऊपर शिखर का न होना इस धारणा को पुष्ट करता है। मौसम के झंझावात झेलता मंदिर तब भी सिर तानकर खड़ा है। बगल से बहती वालधुनी नदी बाढ़ में जब भी विकराल रूप में होती है, उसका पहला नजला इमली और आम के पेड़ों से घिरे इस परिसर पर ही फूटता है।
अंबरनाथ मंदिर की तुलना आबू के दिलवाड़ा, उदयपुर के उदयेश्वर और सिन्नर के गोंडेश्वर मंदिरों से की जाती है। इतना मोहक पौराणिक मंदिर मुंबई के इतने पास है, फिर भी अगर आपने देखा नहीं। तो फिर बोलिए, दुर्भाग्य किसका है!
महाराष्ट्र
यह मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला की ज्वलंत मिसाल है। वहां के स्थानीय निवासी इस मंदिर को पांडवकालीन मानते हैं।
एक रात में बना मंदिर